Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 01
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 30
________________ २८ साधारणजिनस्तवनम् । भजान्त जन्मार्जितपातकानि। कियच्चिरं चण्डरुचेमरीचि. स्तोमे तमांसि स्थितिमुद्दहन्ति ॥ ४ ॥ शरण्य कारुण्यपरः परेषां निहंसि मोहज्वरमाश्रितानाम् । मम त्वदाज्ञां वहतोऽपि मूर्दा शान्ति न यात्येष कुतोऽपि हेतोः॥५॥ भवाटवीलङ्घनसार्थवाहं त्वमाश्रितो मुक्तिमहं यियामुः। कषायचोरैर्जिन लुप्यमानं रत्नत्रयं मे तदुपेक्षसे किम् ।। लब्धोऽसि स वं मयका महात्मा भवाम्बुधौ बंभ्रमता कथंचित् । आः पापपिण्डेन नतो न भत्त्या __न पूजितो नाथ नतु स्तुतोऽसि ॥७॥ संसारचक्रे भ्रमयन् कुबोध दण्डेन मां कर्ममहाकुलालः। करोति दुःखप्रचयस्थभाण्डं ततः प्रभो रक्ष जगच्छरण्य ॥ ८॥

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