Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 01
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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श्रीकुमारपालभूपालविरचितम्
कदा त्वदाज्ञाकरणाप्ततत्त्व
स्त्यक्त्वा ममत्वादिभवैककन्दम् । आत्मैकसारो निरपेक्षवृत्ति
मोक्षेऽप्यनिच्छो भावितास्मि नाथ ॥९॥ तव त्रियामापतिकान्तिकान्तै
र्गुणैनियम्यात्ममनःप्लवङ्गम् । कदा त्वदाज्ञामृतपानलोलः
स्वामिन् परब्रह्मरतिं करिष्ये ॥ १० ॥ एतावती भूमिमहं त्वदंहि
पद्मप्रसादागतवानधीश। हठेन पापास्तदपि स्मराद्या
ही मामकार्येषु नियोजयन्ति ॥ ११ ॥ भद्रं न किं त्वय्यपि नाथनाथे ___ सम्भाव्यते मे यदपि स्मराद्याः । अपाक्रियन्ते शुभभावनाभिः
पृष्ठिं न मुञ्चति तथापि पापाः ॥१२॥ भवाम्बुराशौ भ्रमतः कदापि

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