Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 01
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 35
________________ श्रीकुमारपालभूपालविरचितम् ३३ ही दुःखराशौ भववारिराशौ यस्मान्निममोऽस्मि भवद्विमुक्तः ॥ २६ ॥ स्वामिनिममोऽस्मि सुधासमुद्रे यन्नेत्रपात्रातिथिरद्य मे भूः चिन्तामणौ स्फूर्जति पाणिपद्मे पुंसामसाध्यो नहि कश्चिदर्थः ॥ २७॥ त्वमेव संसारमहाम्बुराशौ निमज्जतो मे जिन यानपात्रम् । त्वमेव मे श्रेष्ठसुखैकधाम विमुक्तिरामाघटनाभिरामः ॥२८॥ चिन्तामणिस्तस्य जिनेशपाणौ कल्पद्रुमस्तस्य गृहाङ्गणस्थः। नमस्कृतो येन सदापि भक्या स्तोत्रैः स्तुतो दामभिरर्चितोऽसि ॥२९॥ निमील्य नेत्रे मनसः स्थिरत्वं विधाय यावजिन चिन्तयामि। त्वमेव तावन्नपरोऽस्ति देवो

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