Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 01
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala
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श्रीकुमारपालभूपालविरचितम् ३१ खामिन्नधर्मव्यसनानि हित्वा
मनः समाधौ निदधामि यावत् । तावत्कुधेवान्तरवैरिणो मा
मनल्पमोहान्ध्यवशं नयन्ति ॥ १८ ॥ त्वदागमाहोनि सदैव देव
मोहादयो यन्मम वैरिणोऽमी । तथापि मूढस्य पराप्तबुद्ध्या
तत्सन्निधौ ही न किमप्यकृत्यम् ॥१९॥ म्लेच्छैर्नृशंसैरतिराक्षसैश्च
विडम्बितोऽमीभिरनेकशोऽहम् । प्राप्तस्त्विदानी मुवनैकवीर
त्रायस्व मां यत्तव पादलीनम् ॥ २० ॥ हित्वा स्वदेहेऽपि ममत्वबुद्धि
श्रद्धापवित्रीकृतसद्विवेकः। . मुक्तान्यसङ्गः समशत्रुमित्रः
स्वामिन् कदा संयममातनिष्ये ॥२१॥ विमेव देवो मम वीतराग .

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