Book Title: Jain Stotra Sangraha Part 01
Author(s): Yashovijay Jain Pathshala
Publisher: Yashovijay Jain Pathshala

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Page 32
________________ साधारणजिनस्तवनम् । मन्ये न मे लोचनगोचरो भूः । निस्सीमसीमन्तकनारकादि. दुःखातिथित्वं कथमन्यथेश ॥ १३ ॥ चकासिचापाङ्कुशवज्रमुख्यैः । - सल्लक्षणैर्लक्षितमंहियुग्मम् । नाथ त्वदीयं शरणं गतोऽस्मि दुर्वारमोहादिविपक्षभीतः ॥ १ ॥ अगण्यकारुण्य शरण्य पुण्य सर्वज्ञ निष्कण्टक विश्वनाथ दीनं हताशं शरणागतं चमां रक्ष रक्ष स्मरभिल्लभल्ले:१५॥ त्वया विना दुष्कृतचक्रवालं मान्यः क्षयं नेतुमलं ममेश ।। किंवा विपक्षप्रतिचक्रमूलं चक्रं विना च्छेत्तुमलम्भविष्णुः ॥ १६ ॥ यदेवदेवोऽसि महेश्वरोऽसि बुद्धोऽसि विश्वत्रयनायकोऽसि । तेनान्तरङ्गारिगणाभिभूत स्तवाग्रतो रोदिमि हा सखेदम् ॥ १७॥

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