Book Title: Swayambhu Stotram
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 16
________________ nirmannmammmmmmmmmm स्वयम्भूस्तोत्र wwamwww.rrrrrrrnwww.nxnx इसलिए उनकी प्रधानताको लिये हुए यहां इन स्तवनोंमेंसे स्तुत तीर्थङ्करोंका परिचय क्रमसे दिया जाता है :___ (१) वृषभजिन नाभिनन्दन (नाभिरायके पुत्र) थे, इक्ष्वाकुकुलके आदिपुरुष थे और प्रथम प्रजापति थे। उन्हींने सबसे पहले प्रजाजनोंको कृष्यादि-कर्मों में सुशिक्षित किया था (उनसे पहले यहां भोगभूमिको प्रवृत्ति होनेसे लोग खेती-व्यापारादि करना अथवा असि, मसि, कृषि, विद्यावाणिज्य और शिल्प इन जीवनोपायरूप षट् कर्मोंको नहीं जानते थे), मुमुक्षु होकर और ममता छोड़कर वधू तथा वसुधाका त्याग करते हुए दीक्षा धारण की थी, अपने दोषोंके मूलकारण (घातिकर्मचतुष्क) को अपने ही समाधितेज-द्वारा भस्म किया था (फलतः विश्वचक्षुता एवं सर्वज्ञताको प्राप्त किया था) और जगतको तत्त्वका उपदेश दिया था । वे सत्पुरुषोंसे पूजित होकर अन्तको ब्रह्मपदम्प अमृतके स्वामी बने थे और निरंजन पदको प्राप्त हुए थे। __-(२) अजितजिन देवलोकसे अवतरित हुए थे, अवतारके समयसे उनका बंधुवर्ग पृथ्वीपर अजेयशक्ति बना था और उस बन्धुवर्गने उनका नाम 'अजित' रक्खा था। आज भी (लाखों वर्ष बीत जानेपर) उनका नाम स्वसिद्धिकी कामना रखनेवालोंके द्वारा मंगलके लिये लिया जाता है। वे महामुनि बनकर तथा घनोपदेहसे (घातिया कोंके आवरणादिरूप दृढ उपलेपसे) मुक्त होकर भव्यजीवोंके हृदयोंमें संलग्न हुए कलंकों (अज्ञानादिदोषों तथा उनके कारणों) की शांतिके लिये अपनी समर्थ-वचनादि-शक्तिकी सम्पत्तिके साथ उसी प्रकार उदयको प्राप्त हुए थे जिस प्रकार कि मेघोंके आवरणसे मुक्त हुआ सूर्य कमलोंके अभ्यु- . दयके लिये उनके अन्तः अन्धकारको दूर कर उन्हें विकसित करनेके लिये अपनी प्रकाशमय समर्थशक्ति-सम्पनिके साथ

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