Book Title: Swayambhu Stotram
Author(s): Jugalkishor Mukhtar
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 14
________________ स्वयम्भूस्तोत्र समन्तभद्रभारतीके स्तोता कवि नागराजने सारी ही समन्तभद्रवाणीके लिए 'वर्द्धमानदेव-बोध-बुद्ध-चिद्विलासिनी' और 'इन्द्रभूति-भाषित-प्रमेयजाल-गोचरा' जैसे विशेषणोंका प्रयोग करके यह सूचित किया है कि समन्तभद्रकी वाणी श्रीवर्द्धमानदेवके बोधसे प्रवुद्ध हुए चैतन्यके विलासको लिए हुए है और उसका विषय वह सारा पदार्थसमूह है जो इन्द्रभूति ( गौतम ) गणधरके द्वारा प्रभाषित हुआ है-द्वादशांगश्रुतके रूपमें गूथा गया हैं। अस्तु । - इस ग्रन्थमें भक्तियोग, ज्ञानयोग और कर्मयोगकी जो निर्मल गंगा अथवा त्रिवेणी बहाई है उसमें अवगाहन-स्नान किए ही बनता है और उस अवगाहनसे जो शान्ति-सुख मिलता अथवा ज्ञानानन्दका लाभ होता है उसका कुछ पार नहीं-वह प्रायः अनिर्वचनीय है । इन तीनों योगोंका अलग अलग विशेष परिचय आगे कराया जायगा। "इस स्तोत्रमें २४ स्तवन हैं और वे भरतक्षेत्र-सम्बन्धी वर्तमान अवसर्पिणीकालमें अवतीर्ण हुए २४ जैन तीर्थङ्करोंकी अलग अलग स्तुतिको लिये हुए हैं । स्तुति-पद्योंकी संख्या सब स्तवनोंमें समान नहीं है । १८वें स्तवनकी पद्य-संख्या २०, २२वें की १० और २४वेंकी आठ है, जब कि शेष २१ स्तवनोंमेंसे प्रत्येक की पद्यसंख्या पांच पांचके रूपमें समान है । और इस तरह ग्रन्थके पद्योंकी कुल संख्या १४३ है । ये सब पद्य अथवा स्तवन एक ही छन्दमें नहीं किन्तु भिन्न भिन्न रूपसे तेरह प्रकारके छन्दोंमें निर्मित हुए हैं, जिनके नाम हैं-वंशस्थ, इन्द्रवज्रा, उपेन्द्रवज्रा, उपजाति, रथोद्धता, वसन्ततिलका, पथ्यावक्त्र अनुष्टुप, सुभद्रा- - मालती-मिश्र-यमक, वानवासिका, वैतालीय, शिखरणी, उद्गता, आर्यागीति (स्कन्धक)। कहीं कहीं एक स्तवनमें एकसे अधिक

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