________________ 148 नैषधमहाकाव्यम् / इति चामरः / तथा तरस्विनां वेगवताम् , अश्वानां ध्वजिनीषु अश्वारोहिसेनासु, ये ध्वजाः पताकाः तैः करणः, विचित्राणि नानारूपाणि, चीनांशुकानि ध्वजसम्बन्धीनि चीनदेशभवसूक्ष्मवस्त्राणि, तैः एव वल्लिभिः लताभिः वेल्लितं वेष्टितं सत् , वनम् वनतुल्यम् , अभूत् , वनकल्पम् अभूदित्यर्थः / वनं यथा सिंह-हस्ति-व्याघ्र-वृक्षादिभिः वेष्टितं भवति, तथा तद्देशावच्छिन्नं नभोऽपि वस्त्रनिर्मितसिंहहस्तिव्याघ्रचि. ह्नितध्वजेर्वेष्टितमभूदिति भावः // 6 // ___ आकाश वायुसे परिपूर्ण ( स्थूल बने हुए ) कपड़ेके बनाये गये घोड़ों, हाथियों और बाघों ( की आकृतिवाली पताकाओं) से तथा वेगवान् ( तेज चलनेवाले ) घोड़ोंवाली सेनाकी पताकाओंसे अनेक वर्णवाले चीनदेशके बने महीन (पक्षा०-'चीन' जातिके विचित्र वर्णवाले मृगविशेष ) वस्त्ररूपिणी लताओंसे युक्त बन ( के समान ) हो गया। (अथवातेज घोड़ोंवाली ( नलकी) सेना आकाशमें वायुसे परिपूर्ण अर्थात् फैलायी गयी पताकाओंसे, घोड़ों-हाथियों और अन्य द्वीपनिवासी ( नलकी ) सेनामें सम्मिलित हुए राजाओंसे उपलक्षित (युक्त ) होकर अनेक वर्णके चीनदेशोत्पन्न वस्त्ररूपिणी लताओंसे युक्त ( पक्षा०'चीन' जातीय मृगविशेष तथा ऊपर में फैली हुई लताओंसे युक्त ) बन अर्थात् बनके समान हो गयी ) / [ बनमें भी बाघ, 'चीन' जातीयमृग, लता, तथा वृक्ष होते हैं; अत एव उक्तरूपा नलकी सेना भी बनके समान हो गयी ] // 6 // भ्रवाऽऽह्वयन्ती निजतोरणजा गजालिकर्णानिलखेलया ततः / ददर्श दूतीमिव भीमजन्मनः स तत्प्रतीहारमहीं महीपतिः / / 7 / / भ्रवेति / (ततः' प्रस्थानानन्तरम् ) सः महीपतिः नलः, गजालीनां द्वारस्थित गजघटानां, कर्णानिलैः कर्णसञ्चालनोत्थवातैः. खेलतीति तादृशया खेलया चञ्चलया, निजया तोरणस्रजा तोरणलम्बिमालया एव, भ्रवा आह्वयन्तीं 'शीघ्रम् आगच्छ' इति भ्रसङ्केतेन आकारयन्ती, भीमजन्मनः भैम्याः, दूतीम् इवेत्युत्प्रेक्षा। तस्य भीमस्य, प्रतीहारमहीं द्वारभूमि, द्वारदेशमित्यर्थः / प्रतिपूर्वकात् हृधातोत्रि 'उपसर्गस्य घन्य. मनुष्ये बहुलम्' इति उपसर्गस्य दीर्घः / 'स्त्री द्वार प्रतीहारः' इत्यमरः / ददर्श // 7 // इस ( प्रस्थान करने) के बाद उस राजा ( नल) ने (द्वारपर खड़े) गज-समूहके कानोंकी हवाके चञ्चल ( हिलती हुई ) अपनी तोरणमालारूपी भौंहोंसे बुलाती हुई दमयन्ती दूतीके समान उस ( भीम राजा ) के द्वारभूमि अर्थात् द्वारको देखा / [द्वारपर बंधे या खड़े हुए हाथियों के समूहके कानोंकी हवासे हिलती हुई फूलों एवं पल्लवोंसे बनी हुई तोरणमाला ऐसी मालूम पड़ती थी कि मानो वह दमयन्तीकी द्वारभूमिरूपिणी दूती अपने भ्रूचालनके संङ्कतसे नलको शीघ्र पहुंचने के लिये कह रही हो // नलने राजा भीमके द्वारको देखकर शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़े ] // 7 // 1. () एतरकोष्ठान्तर्गतः पाठो मूलानुरोधान्मया वर्द्धित इत्यवधेयम् /