Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 767
________________ 1464 नैषधमहाकाव्यम् / नामवाली ) नहीं है, (किन्तु 'पार्वती' नामवाली हैं, अत एव तुम्हारी पार्वतीसे भी अधिक महिमा है ) / [ यहॉपर नामकी अपेक्षा पार्वतीको इस जन्ममें 'असतो' कहने से उनकी निन्दा नहीं समझनी चाहिये ] // 117 // एषा रतिः स्फुरति चेतसि कस्य यस्याः सूने रति युतिरथ त्वयि वाऽऽतनोति?। त्रैयक्षवीक्षण-खिलीकृत-निर्जरत्वसिद्धायुरध्वमकरध्वजसंशयं कः ? // 118 / / ___ एषेति / हे नल ! एषा दमयन्ती, कस्य जनस्य, चेतसि मनसि, रतिः मदनवधूः, इति स्फुरति ? प्रकाशते ? अपि तु न कस्यापि इत्यर्थः / कुत इत्याह-यस्याः दमः यन्त्याः, यतिः अङ्गकान्तिः, एवेति शेषः / रतिम् अनुरागं मदनवधून्च इत्यर्थः / रतिः स्त्री स्मरदारेषु रागे सुरतगुह्ययोः' इति मेदिनी। सूते जनयति, यस्याः अङ्गकान्तिः रतिं जनयति सा कथमपि रतिर्भवितुं नाहति इति भावः / अथ प्रश्नार्थकमव्ययम्, कः वा, जनः इति शेषः / त्वयि भवति नले विषये, यक्षेण शिवसम्बन्धिना / 'न यवाभ्याम्-' इत्यैजागमः। वीक्षणेन चक्षुषा, तृतीयनयनेनेत्यर्थः। खिलीकृतः प्रति. बद्धीकृतः, विनाशित इति यावत् / निर्जरत्वेन देवत्वेन, सिद्धस्य प्रसिद्धस्य, आयुषः जीवनकालस्य, अमरत्वरूपदीर्घजीवनस्य इत्यर्थः / अध्वा मार्गः यस्य तादृशस्य, मकरध्वजस्य कन्दर्पस्य, संशयं सन्देहम्, मकरध्वज इति भ्रान्तिमित्यर्थः। आतनोति? विस्तारयति ? न कोऽपि इत्यर्थः। देवत्वेन अमरोऽपि कामः कामारिनयनानलेन दग्धः सन् मृतः, मृतस्य च जीवितप्राणिनि सन्देहासम्भवात् भवति अयं कामो न वा इति संशयो न कस्यापि उदेतुमर्हति, तस्य मृतत्वादिति भावः / रतिकामाभ्या। मपि भवन्तौ मनोहरश्रीकौ इति तात्पर्यम् // 118 // यह ( दमयन्ती ) रति ( कामपत्नी ) है, ऐसा किसके मनमें भासित होता है ? अर्थात् किसीके नहीं ( कोई भी व्यक्ति इस दमयन्तीको .रति नहीं समझता, क्योंकि ) जिसकी शरीरकान्ति रति ( कामपत्नी, पक्षा०-तुम्हारेमें भनुराग ) को उत्पन्न करती है और तुम्हारे विषयमें भी शिवजीके तृतीयनेत्रसे व्यर्थ ( नष्ट ) किये गये अमरत्व-सिद्ध आयुर्मार्ग (आयु) वाले कामदेवका सन्देह कौन करता है ? अर्थात् कोई भी आपको कामदेव नहीं समझता / [दमयन्तीकी शरीरकान्तिरूपिणी पुत्री से उत्पन्न रति दमयन्तीकी धेवती ( नातिन) हुई, अत एव दमयन्तीको कोई भी रति नहीं समझता, तथा कामदेवको देव होने के कारण अमर ( मरणहीन ) होना सिद्ध होनेपर भी शिवजीने तृतीय नेत्रसे कामदेवको नष्ट कर दिया, अतः आपको कोई कामदेव भी नहीं समझता क्योंकि शिवजी के द्वारा उसके नष्ट हो जानेके कारण कामदेवविषयक सन्देहका अवसर ही नहीं रह जाता / आप तथा दमयन्ती-दोनों ही क्रमशः कामदेव तथा रतिसे अधिक सुन्दर हैं ] // 118 // एतां धरामिव सरिच्छविहारिहारामुल्लासितस्त्वमिदमाननचन्द्रभासा / बिभ्रद्विभासि पयसामिव राशिरन्तर्वेदिश्रियं जनमनःप्रियमध्यदेशान् // 116 / /

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