Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 916
________________ 9.44 श्लोकानुक्रमणिका 1613 विषमो मल રાપ૭ वैदर्भि दत्त 14169 | शशंस दासी 12221 विष्टरं तट वैदर्भि दर्भ 11351 | शशकलङ्क 55 विष्वग्वृतः 1.84 वैदर्भीकेलि 2 / 105 | शशाक निहोतु 152 विस्मेयमति 171140 वैदर्भीबहु 15587 | शशिमयं / 1138 विहाय हा वैदर्भाविपुला 15.90 शस्ता न हंसा 39 वीक्षितस्त्व वैराग्यं यः 17 / 22 शाकः शुकच्छद 11138 वीक्ष्य तस्य वरुण 51 वैरिणी शुचिता 171192 शारी चरन्ती 671 वीच्य तस्य विनये 5 / 20 वैरिश्रियं 11111 | शिक्षव साक्षा 1076 वीचय पत्युधरं 18 / 120 ववस्वतोऽपि 14176 | शिखी विधाय 975 वीक्ष्य भाव 18109 वैशद्यहृद्ये 146 शिरः कम्पानु 10 124 वीक्ष्य भीम 1847 व्यतरदथ 41119 शिरीषकोषा 7/47 वीक्ष्य वीक्ष्य कर 181125 व्यधत्त धाता 7/54 शिरीषमृद्वी 9158. वीच्य वीच्य पुन 18 / 101 | व्यधत्त सौधौ 101122 शिशिरज 1948. वीरसेनसत 184 व्यधुस्तमा 1676 शिष्याः कला 211110 वृणीष्व वर्णन 1215 व्यर्थीकृतं / शीघ्रलखित 5 / 58 वृणे दिगीशा 970 व्यर्थीभवद् 8119 शुचिरुचि 221146 वृतः प्रतस्थे 161 व्यलोकि लोकेन 15/71 शुद्धं वंशद्वयी 1739 वृत्ते कर्मणि 17 / 136 व्यापृतस्य 21138 शुद्धवंश 5 / 102 वृथा कथेयं व्यासस्यैव 1763 शुद्धान्तसम्भोग 3 / 93 वृथा परीहास 9 / 25 व्रजति कुमुद 1998 | शुभाष्टवर्ग 9 / 117 वृथार्पयन्ती 314 बजते दिवि 280 शुभ्रांशुहार 134 वृद्धो वाद्धिं 121102 व्रज तिं 4 / 185 शुश्रषिताहे 6.94 वेस्थ मय्यागते 2081 व्रजन्तु तेऽपि 9 / 154 | शूरेऽपि सूरि 11 // 32 वेत्थ मानेऽपि 2077 शृङ्गारभृङ्गार 22257 वेद यद्यपि 5 / 36 सक्रः किमेष 138 शृणीपद 20158 वेदानुचरतां 171160 शड्ढालता 13125 शृण्वता निभृत 18 / 142 वेदैर्वचोभि 1164 शचीसपत्न्यां 22226 शृण्वन् सदार 3328 वेदेस्तद्वेषिभिः 17196 शतक्रतू 17/103 | शेषं नलं 1419 वेलातिगत्रण / 3249 शतशः श्रुति 2054 / शैशवव्यय 5.33 वेलामतिक्रम्य 74 शम्भुदारुवन 18323 | शोकश्चेत् 211147 वेश्म पत्यु 1833 शरैः प्रसून 866 / शोणं पद 13 / 24 वेश्माप सा 656 शरैरजस्रं 875 | शोभायशो 8 / 34 1037 शर्म किं हृदि 18140 श्यामीकृतां 115106 99 वैदर्भदूता

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