________________ सप्तदशः सर्गः। 1033 ( बुद्धदेवसे जीता गया ) जो कामदेव मानों बुद्धदेव (मारजित्-कामविजयी) के साथ स्पर्धासे लोकजिद्भाव संसारको जीतनेका माव धारण करता है तथा (शिवजीके नेत्राग्निमें भस्म हो जानेसे ) शरीर रहित अर्थात् अनङ्ग जिस ( कामदेव ) का इस लोकमें (शरीर रहित ) शिवजी का कर्तृत्व है। [बुद्धदेव 'मारजित्' ( कामदेवविजयी) तथा 'लोकजित्' (संसारविजयी) है, अतः उन बुद्धदेवसे पराजित कामदेव 'मैं भी उस बुद्धदेवके समान ही हो जाऊं' ऐसी उनसे स्पर्धा करके समस्त लोगों पर विजय पाता हुआ 'लोकजित्' बन रहा है और वह कामदेव शिवजीके नेत्रकी अग्निसे भस्म होकर अशरीरी ( अनङ्ग) हो गया है और जिस प्रकार नैयायिकों के मतसे अशरीरी शिवजी ही लोकके स्रष्टा ( सृष्टिकर्ता ) हैं, उसी प्रकार यह कामदेव भी मानो उन (शिवजी ) के साथ स्पर्धा करता हुआ अशरीरी ( अनङ्ग) होकर इस संसार में कामियों के मनोविकार ( या-मैथुन द्वारा सब लोगों के प्रति ) कर्तृत्व धारण कर रहा है / लोक-व्यवहार में भी देखा जाता है कि प्रबल शत्रुसे पराजित व्यक्ति उसकी समानता करनेके लिए उससे स्पर्धा करता हुआ वैसा ही कार्य करता है, इसी प्रकार 'मारजित्' (बुद्धदेव ) 'लोकजित' हैं और शिवजी न्यायसिद्धान्तानुसार अशरीरी होकर सृष्टिकर्ता हैं, उसी प्रकार कामदेव भी क्रमशः 'लोकजित्' तथा 'अनङ्ग' होकर सब लोगोंमें मनोविकार करनेसे सृष्टिकर्ता हो रहा है / बुद्धदेव तथा शिवजीसे जीता गया कामदेव भी 'लोकजित्' होनेसे तथा अशरीरी अर्थात् 'अनङ्ग' होकर सृष्टिकर्ता होनेसे उन दोनों के समान ( अतिशय ) बलवान् है / दूसरेसे पराजित व्यक्तिका वैसे आचरणसे उसकी विजेता की समानता करना उचित ही है ] // 16 // ईश्वरस्य जगत् कृत्स्नं सृष्टिमाकुलयन्निमाम् / अस्ति योऽस्त्रीकृतस्त्रीकस्तस्य वरॅमनुस्मरन् / / 17 / / ( कुलकम् ) ईश्वरस्येति / यः स्मरः, तस्य ईश्वरस्य, वैरं शत्रुताम् , अनङ्गीकरणरूपमित्यर्थः, अनुस्मरन् मनःस्थीकुर्वन् , स्त्रियः न भवन्तीति अस्त्रियः, अ-स्वीकृताः स्त्रियो येन तादृशः सन् , अत्र स्त्रियाः स्त्रोत्वाभावकरणरूपः विरोधः, तत्परिहारस्तु-अस्त्राणि आयुधानि कृतानि इति अस्वीकृताः, अभूततद्भावे च्विः, अस्त्रीकृताः, स्त्रियः येन सः तादृशः अस्वीकृतस्त्रीकः सन् , 'नद्यतश्च' इति कप। ईश्वरस्य इमां स्त्रीपुंसारिमकाम् इत्यर्थः, सृष्टिं निर्माणं, कृत्स्नं जगत् आकुलयन् अस्थिरीकुर्वन् , अस्ति वर्तते / ईश्वरेण या स्त्रीकृता सा अनेनास्त्रीकृता इति ईश्वरप्रतिकूलाचरणेन, तथा ईश्वरेण त्रिपुरासुरवधकाले विष्णोर्मोहिनी मूर्तिरूपा स्त्री शस्त्रीकृता, अनेनापि स्त्रियः शस्त्रीकृता इत्येककार्यकारितया च ईश्वरेण सह स्पर्धामसी अकरोत् इति निष्कर्षः // 17 // स्त्रियोंको अम्नी करनेवाला जो ( कामदेव ) उस (शिवजी ) के वैर ( शरीरदाहकर अनङ्ग बनाना ) को स्मरण करता हुआ (पाठा०-मानों स्मरण करता हुआ) शिबजी की 1. 'वैरं स्मरनिव' इति पाठान्तरम् /