________________ 1046 नैषधमहाकाव्यम् / असमर्थ ) लोगोंकी जीविका है, ऐसा बृहस्पति' कहते हैं। [ अतएव परलोकके नहीं होनेसे इच्छानुसार कार्य करना चाहिये ] // 38 // शुद्धं वंशद्वयोशुद्धौ पित्रोः पित्रोर्यदेकशः / तदनन्तकुलादोषाददौषा जातिरस्ति का / / 36 / / शुद्धमिति / यत् यतः कारणात् , पित्रोः पित्रोः मातापितृपरम्परयोः मध्ये / निर्धारणे सप्तमी / वीप्सायां द्विरुक्तिः / पिता मात्रा' इत्येक शेषः / एकशः एकैकस्य, वंशद्वयीशुद्धौ उभयकुलशुद्धौ, पितृवंशमातामहवंशयोः विशुद्धितायां सत्यामित्यर्थः / शुद्ध निर्दोष, पुत्रं जायते इति शेषः / पुत्रस्यापि शुद्धता भवति इत्यर्थः। तत् तस्मात् अनन्तानाम् अशेषाणाम् , आमूलानामिति भावः / कुलानां वंशानाम् , अदोषात् दोपराहित्यात् , अदोषा निर्दोषा, जातिः जन्म, का अस्ति ? न काऽपि इत्यर्थः / यथाहुः-'अनादाविह संसारे दुर्वारे मकरध्वजे / कुले च कामिनीमूले का जातिपरिकल्पना ? // ' इति // 39 // जिस कारण माता-पितामें से एक-एकके दोनों वंश (पिताका कुल तथा नानाका कुल ) का शुद्धि होने पर शुद्ध सन्तान होती है, उस कारण अनन्त वंशके दोष रहित होनेसे निदोष जाति ( जन्म ) कौन है ? अर्थात् कोई नहीं। ( अथवा-जिस कारण पिताके मातापिता ( पितामही तथा पितामह अर्थात् दादी-दादा) और माताके माता-पिता ( मातामही और मातामह अर्थात् नानी-नाना) और उन दोनों में से .एक-एकके माता-पिता इस प्रकार ब्रह्मातक प्रत्येक की शुद्धि की परीक्षा करनी चाहिये; उस कारण अनन्त वंशवाली में ( अत ( तथा इन्द्रचन्द्रादिके भी व्यभिचारका प्रमाण पुराणादिमें मिलने ) से कौन जाति निर्दोष है ? अर्थात् कोई भी जाति निर्दोष नहीं प्रतीत होती। अथवा-....."उस कारण ब्रह्मातक दोनों वंशके दोषरहित होनेसे जाति निर्दोष होती है, वह कौन-सी जाति है ? ( जिसे शुद्ध माना जाय) अर्थात् कोई भी नहीं। [ उक्त कारणोंसे शुद्ध जातिकाःमिलना अस. म्भव होनेसे सभी जाति सदोष हैं, अतएव जातिदोषका भय छोड़कर स्वेच्छापूर्वक व्यवहार करना चाहिये ] // 39 // 1. तदुक्तं बृहस्पतिना 'अग्निहोत्रं त्रयो वेदास्त्रिदण्डं भस्मपुण्डकम् / बुद्धिषौरुषहीनानां जीविकेति बृहस्पतिः॥' इति / 2. 'शुद्धिवंश-' इति 'प्रकाश' व्याख्यातः पाठः साधु प्रतिभाति / 3 तदानन्त'-इति पाठः सम्यक् इति 'प्रकाश'। 4. अस्य नित्यपुंस्त्वेन अत्र 'सन्तानम् , अपत्यं' वा भवेदिति बोध्यम् /