Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 807
________________ 1504 नैषधमहाकाव्यम् / मकरः, कुलीरः कर्कराशिस्तत्संबन्धिन्यस्ताराः कुलीरः, अमूनि प्रत्यक्षदृश्यान्यमरनिर्झरिण्या मन्दाकिन्या यादांसि जलजन्तव एव इत्यहं मन्ये। गोधा मत्स्याः कर्कटका वर्तमानेन द्रष्टं योग्याः, नत्वधःस्थितेनेत्यत आह-तस्या नाकनद्याः पूरे खेलन्तः क्रीडन्तः सुरास्तेभ्यः सकाशादीत्या दूरं तलपर्यन्तं मग्नानि अत एव जलतलगामित्वादधोभागे इतो भूदेशादपि स्पष्टं सुखेन जानीमः / भूभागे स्थिता अपि जलतलगामिस्वाद्दोधादियादांसि व्यक्तं पश्याम इत्यर्थः / गोधाकारं ध्रवमण्डलं, गोधा ज्येष्ठा वा॥ गोधा ( गोधाकृति ध्रुवमण्डल, या-गोधा नक्षत्र पक्षा०-गोह' नामक जलचर जीव ), मकर ( दशम राशि-सम्बन्धी तारा-विशेष, पक्षा०-'मगर' नामक जलचर जीव ) और कर्कट ( चतुर्थ राशि-सम्बन्धी तारा-विशेष, पक्षा०-'केकड़ा' नामक जलचर जीव )-ये (प्रत्यक्ष दृष्टिगोचर होते हुए ये सब ) देवनदी (आकाशगङ्गा ) के जलचर जीव हैं, ऐसा मैं मानता हूँ और उस ( आकाशगङ्गा) के प्रवाहमें क्रीड़ा करते हुए देवोंके भयसे दूर ( जलके नीचे अन्तिम तलतक ) डूबे हुए इनको हमलोग यहां (इस भूलोक) से स्पष्ट देखते हैं / [ अन्यथा आकाशगङ्गाके जलके 'गोधा, मकर तथा कर्कट' नामक जलजन्तुओंको पानीके ऊपर रहनेसे उस आकाशगङ्गाके जलके ऊपर लोकमें निवास करनेवाले ही लोग देख सकते हैं, आकाशगङ्गाके नीचे भूलोकमें निवास करनेवाले हमलोग नहीं देख पाते; किन्तु वहां जलक्रीडा करते हुए देवों के मयसे जब वे जीव पानी के निचले सतहपर आ जाते हैं तब हमलोग भी उन्हें देख लेते हैं / जलमें कोड़ा करनेवालों के भयसे जलचर जीवोंका जलके भीतर डूबकर छिप जाना स्वभाव होता है ] // 20 // स्मरस्य कम्बुः किमयं चकास्ति दिवि त्रिलोकीजयवादनीयः / कस्यापरस्योडुमयैः प्रसूनैर्वादित्रशक्तिर्घटते भटस्य / / 21 / / स्मरस्येति / त्रिलोकीजये वादनीयो वादनाहः स्मरस्य संबन्धी अयं प्रत्यक्षदृश्यो विशाखानक्षत्ररूपः कम्बुः शङ्खः दिवि चकास्ति किम् ? उच्चतरप्रदेशे वदितं वाद्यं सर्वत्राकर्ण्यत इति गगने स्थापितो लोकत्रयविजयवादनाहः कामस्यैव कम्बुः किमित्यर्थः / यस्मादपरस्य कस्य भटस्योङमयस्तारारूपैः प्रसूनैः कृत्वा वादित्रशक्तिधिनिर्माणं घटतेऽपि स्मरस्यैव धनुर्बाणानां पुष्परूपत्वदर्शनात्तदीयस्यैव वाद्यस्य पुष्परूपत्वसंभावनाया युक्तस्वात् ताराकुसुमरूपः कामशङ्ख एवायं गगने शोभते, न स्वन्यदीय इत्यर्थः // 21 // तीनों लोकके विजयके लिये बजाने योग्य, कामदेवका यह (दृश्यमान विशाखानक्षत्ररूप), बनाने की शक्ति) दूसरे किस शूरवीरमें घटित होती है ? अर्थात् किसी में नहीं। [ अधिक ऊँचे स्थानसे बजाया गया बाजा बहुत दूरतक सुनायी पड़ता है, अत एव तीनों लोकपर

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