Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 878
________________ द्वाविशः सर्गः। इस इन्द्र-सम्बन्धिनी (पूर्व) दिशामें बिहार करते हुए तथा सर्वसम्मतिसे स्वच्छ सम्पूर्ण कलाओंसे रचे गये ( अथवा-.........."रचनेके कारण) निर्मल चन्द्रमाके नील. कमलके समान कान्तिवाले कलङ्कको बलविजयी ( इन्द्र ) के हस्तिप्रधान ऐरावतके दोनों कपोल तथा दोनों कुम्मसे निकले हुए दानजलके लगनेसे काकतालीय न्यायप्से उत्पन्न हुआ मानता हूं। [ तालवृक्षके नीचे बैठे हुए कौवेके ऊपर सहसा तालफलके गिरने-जैसा सहसा अतर्कित कोई कार्य होनेपर काकतालीय न्यायका प्रयोग होता है / पूर्व दिशामें उदित चन्द्रमा पहले सर्वसम्मत स्वच्छ-स्वच्छ सब कलाओंसे रचे जानेसे निर्मल था, किन्तु वहांपर पूर्वदिशामें विहार करते हुए चन्द्रमाके मध्यमें सहसा पूर्वदिशामें स्थित ऐरावतका कृष्णवर्ण मदजल लग गया, नीलकमलके समान कृष्णवर्ण वह मदजल ही कलङ्करूपमें प्रतीत होता है, ऐसा मैं मानता हूं] // 139 // अंशं षोडशमामनन्ति रजनीभतः कलां वृत्तयः न्त्येनं पञ्चदशैव ताः प्रतिपदाद्याराकवद्धिष्णवः। या शेषा पुनरुद्धृता तिथिमृते सा किं हरालंकृतिस्तस्याः स्थानबिलं कलङ्कमिह किं पश्यामि सश्यामिकम् ? // 140 / / अंशमिति / हे प्रिये ! लोका रजनीभर्तुः षोडशमंशं कलामामनन्ति सत्यं कथ. यन्ति, ताश्च षोडशांशरूपाः प्रतिपदादिर्यस्मिन्कर्मणि राकां पूर्णिमामभिव्याप्य वद्धिष्णवः प्रतितिथि एकैककलाभिवृद्धया वर्धमानाः पञ्चदशसंख्याका एव कला एनं चन्द्रं वृत्तयन्ति वर्तुलं कुर्वन्ति, तिथिसंख्यासाम्यात्पूर्णमण्डलं कुर्वन्तीत्यर्थः। या पुनः कला षोडशी तिथिमृते उद्धता प्रयोजनाभावाञ्चन्द्राद्धहिः कृता सा षोडशी कला शेषा पञ्चदशकलाभ्योऽवशिष्टा सती; यद्वा-षोडशी तिथिं विना प्रयोजनाभा. वाद्यावशिष्टा सा निष्प्रयोजनस्वादुद्धता चन्द्राबहिनिष्कासिता सती हरालंकृतिः शिवशिरोभूषणं जाता किम् ? चन्द्रे प्रयोजनाभावाद्धरालंकृतिरिवाभूस्किमित्यर्थः / अहं तस्याश्चोतायाः षोडश्याः कलायाःसश्यामिकंनभो नीलिम्ना सह वर्तमान स्थानस्य पूर्वावस्थितेः संबंधि बिलं विवरं तत्कालानवस्थित्या कृत्वा शून्यं नीलं नभोभागमेवेह चन्द्रमण्डलमध्ये कलकं पश्यामि किम् ?मध्यवर्तिनीलं तत्स्थानबिलमेवाहं कलकत्वेन शङ्के इत्यर्थः / शेष'शब्दस्याभिधेयलिङ्गत्वं पूर्वमेव दर्शितम् / 'पूर्णे राका निशाकरे' इत्यमरः / वृत्तयन्ति, 'तत्करोति-' इति णिच / वर्द्धिष्णवः, 'अलंकृत-' इतीष्णुच / तिथिमृते, 'ऋते नलाशाम्' इतीवत् / श्यामिका, मनोज्ञादेराकृतिगणवाद्भावे वुञ्॥ (विद्वान् लोग) निशापति ( चन्द्रमा) के सोलहवें मागको 'कला' कहते हैं अर्थात् चन्द्रमाको सोलह कला बतलाते हैं, (शुक्लपक्षकी) प्रतिपदा तिथिसे पूर्णिमातक बढ़नेवाली वे पन्द्रह ही कलाएं इसे ( चन्द्रमाको ) वर्तुलाकार बनाती हैं, तिथिके बिना बाकी बची हुई जो कला चन्द्रमासे निकाली गयी, वही शिवजीका अलङ्कार (शिरोभूषण) है क्या?

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