Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 815
________________ 1512 नैषधमहाकाव्यम् / ध्वान्तणनाभ्या शितिनाम्बरेण दिशः शरैः सूनशरस्य तारैः। मन्दाक्षलक्ष्या निशि मामनिन्दौ सेा भवायान्त्यभिसारिकाभाः॥३२॥ ध्वान्तेति / ध्वान्तेनैवैणनाभ्या कस्तूर्या तथा,-शितिना नीलेनाम्बरेण गगनेन, अथ च,-वस्त्रेण यद्वा,-ध्वान्तैगनाभ्या कृत्वा नीलेन गगनेनोपलक्षिताः। तथा,निशितत्वात्पुष्पतुल्यरूपस्वाञ्चोज्ज्वलैः तारैननत्रैरेव सूनशरस्य कामस्य शैररुप. लक्षिताः, अथ च,-तारेरुज्ज्वलेः पुष्परुपलक्षिताः। तथा,-प्रकाशाभावान्मन्दाक्षे. मन्दनयनैनरैर्लच्या लक्षणीयाः, अथ च,-मन्दाक्षस्य लज्जाया विषयभूताः सलजाः / अत एवाभिसारिकाभाः स्वरिणीतुल्या दिशोऽनिन्दी चन्द्ररहितायामनुदितचन्द्रत्वाच्छयामायां निशि मामायान्ति प्रत्यागच्छन्ति / तस्मात्सपत्नीभ्रान्त्या त्वं सेा भव / अभिसारिका अपि शुभ्रायां रात्री शुभ्रवस्त्राथाभरणाः, कृष्णायां च रात्री कृष्णवस्त्राद्याभरणाः समायान्ति, ता अपि कस्तूरीकृताङ्गरागा नीलवसनाः प्रच्छन्नरतपुष्पाः कामबाणपीडिताः सलज्जाः सत्यः कामुकं प्रति समायान्ति, तदीयनायिका च सेा भवति, तथा दिशोऽपीत्यर्थः / सर्वा अपि दिश एकत्र मिलिता इति प्रतीतिः। तिर्यः रख्यापि तमो वर्णितमनेन / 'कान्तार्थिनी तु या याति संकेतं साभिसारिका' इति / 'मन्दाक्षमन्दाः' इति पाठे मन्दनयनानामल्पदृश्यास्तमोबाहुल्यात् / अथ च,तमोबाहुल्यान्मन्दाक्ष्यः, अत एव मन्दगमना इत्यर्थः। 'तार' शब्दः पूर्ववत् / मन्दाक्षेति पुंवद्भावः // 32 // (हे प्रिये दमयन्ति ! ) अन्धकाररूप कस्तूरी ( पक्षा०-कस्तूरीतुल्य अन्धकार ) से युक्त, काले कपड़े ( पक्षा०-आकाश ) से उपलक्षित कामबाणोंसे पीडित (पक्षा०-कामबाण = पुष्पोंके समान श्वेतवर्ण ताराओंसे युक्त ), लज्जायुक्त (पक्षा०-नेत्रको सङ्कुचित किये हुए लोगोंसे देखी जानेवाली) अभिसाराभिलाषिणी दिशारूपिणी नायिकाएँ चन्द्ररहित अर्थात् अन्धकारयुक्त रात्रिमें मेरे पास आ रही है ( अत एव तुम ) ईष्यायुक्त होवो। [ जिस प्रकार कृष्णपक्षको अँधेरी रातमै कस्तूरीसे सुगन्धित काला कपड़ा पहनी हुई, कामपीडित ल जाती हुई नायिका नायकके पास जाती है, तब नायकके समीपस्थित उसकी स्त्री उस अभिसार करनेवाली स्त्री के प्रति ईर्ष्या करती है, उसी प्रकार उक्तरूपा दिशारूपा ये अभिसारिकाएँ मेरे पास आ रही हैं, अत एव तुम इनके प्रति ईर्ष्या करो। जब एक अभिसारिकाके मी नायकके पास आनेपर उसकी पत्नी उस अभिसारिकाके प्रति ईर्ष्या करती है, तब बहुत दिशारूपिणी अभिसारिणी नायिकाओं के आनेपर उनके प्रति तुम्हें अतिशय ईर्ष्यायुक्त होना उचित है ] // 32 // भास्वन्मयों मीलयतो दृशं द्रामिथोमिलद्वयञ्चलमादिपुंसः। आचक्ष्महे तन्वि ! तमांसि पक्ष्म श्यामत्वलक्ष्मीविजितेन्दुलक्ष्म ||33|| भास्वदिति / हे तन्वि कृशाङ्गि ! भास्वन्मयी रविरूपा दक्षिणां दृशमस्तमय

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