Book Title: Naishadh Mahakavyam Uttararddham
Author(s): Hargovinddas Shastri
Publisher: Chaukhambha Sanskrit Series Office

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Page 850
________________ द्वाविंशः सर्गः। 1547 हि चन्द्रःसूर्य गच्छति,अत एव दर्शस्य सूर्येन्दुसंगम इति नाम / सूर्यो विष्णोदक्षिणं चतुः / तथा च तुल्ययोहरिहरयोनॆत्रयोयोरपि चन्द्रकामयोः प्रलीनस्वादशैं चन्द्रस्याप्यनङ्गतया च समशीलत्वादुचितव मैत्रीत्यर्थः। तथा च कामस्य चन्द्रसखिताप्रसिद्धिमुख्यैव युक्तेति भावः // 87 // अथवा चन्द्रमा तथा कामदेवकी मित्रता उचित है, क्योंकि वह कामदेव दीप्यमान शिव-नेत्रमें सम्यक् प्रकारसे लीन (नष्ट ) हो गया और यह चन्द्रमा देखनेवाले ( पक्षा०अमावस्या तिथिको प्राप्त ) आदि पुरुष (विष्णु) के सूर्यरूप (दक्षिण) नेत्रमें लीन (नष्ट) होता है / [ विष्णु भगवान्का दक्षिण नेत्र सूर्य है, अत एव हरिहररूपधारी भगवान्के शिवजीके नेत्रमें कामदेव नष्ट हो गया तथा विष्णुजीके सूर्यरूप नेत्रमें अमावस्या आनेपर यह चन्द्रमा नष्ट होता रहता है। इस कारणसे चन्द्रमा तथा कामदेवको मित्रता होना युक्तियुक्त ही है ] // 87 // नेत्रारविन्दत्वमगान्मृगाङ्कः पुरा पुराणस्य यदेष पुंसः। अस्याङ्क एवायमगात्तदानीं कनीनिकेन्दिन्दिरसुन्दरत्वम् // 8 // नेत्रेति / पुरा पूर्व यदा यस्मिन्काले एष मृगाङ्कः पुराणस्य पुंसः श्रीविष्णोर्नेत्रारविन्दत्वं नयनकमलस्वमगात / तदा तस्मिन्काले अस्य विष्णुनेत्रारविन्दभूतस्यास्य चन्द्रस्यायमङ्कः कलङ्क एव कनीनिकाया इन्दिन्दिरस्य भ्रमरस्य सुन्दरस्वमगायापत्। 'अदात्' इति पाठे-अयं श्रीविष्णुरस्य चन्द्रस्याङ्के विषये कनीनिकेन्दिन्दिरसुन्दर. स्वमदात् / नेत्रे हि कनीनिकया भाव्यम् , अरविन्दे च भ्रमरेण। तथा चास्य नेत्रा. रविन्दरूपस्वादकमेवोभयं श्रीविष्णुः कृतवानित्यर्थः / अङ्क एव कनीनिका की भ्रमरेण सुन्दरत्वमस्यादादिति वा / 'इन्दिन्दिरालिषट्चरणचश्चरीकालिनो द्विरेफाः स्युः' इति हलायुधः // 88 // पहले जिस समय यह चन्द्रमा पुराणपुरुष (विष्णु भगवान् ) का नेत्रकमल बना, उसी समय यह कलङ्करूप मृग कनीनिका ( नेत्रतारा-आँखकी पुतली ) रूप भ्रमरकी सुन्दरताको प्राप किया / [ नेत्रमें कनीनिकाका तथा अरविन्दमें भ्रमरका होना उचित होनेसे चन्द्रमा जब विष्णुका नेत्ररूप कमल हुआ, तब चन्द्रमण्डलस्थ कलङ्कमृग कनीनिकारूप भ्रमर हो गया ] // 88 // देवेन तेनैष च काश्यपिश्च साम्यं समीक्ष्योभयपक्षभाजौ / द्विजाधिराजौ हरिणाश्रितौ च युक्तं नियुक्तौ नयनक्रियायाम् // 8 // देवेनेति / तेन देवेन श्रीविष्णुना एष चन्द्रः काश्यपिर्गरुडश्चैतौ द्वावपि साम्यं समानधर्मतां समीचय तुल्यायां नयनक्रियायां क्रमेण नेत्रव्यापारे वाहनव्यापारे च यनियुक्ती, तद्युक्तमुचितमित्यर्थः / 'चौ' अन्योन्यसमुखये / साम्यमेवाह-उभयपक्षौ शुक्लपक्षकृष्णपक्षौ भजति चन्द्रः, गरुडस्तु द्वौ छदौ भजति, ताहशी द्वावपि / 67 नै० उ०

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