________________ 1106 नैषधमहाकाव्यम् / अकरुणस्तं कृतार्थं किं करिष्यतीत्याशङ्कयाह-वृत्ते इति / सुराः ! हे देवाः!, वृत्ते गते, कर्मणि भैमीवरगक्रिपायाम् , कि कुर्मः ? किं सम्पादयामः ? इदानों न किञ्चित् कत्त शक्नुम इत्यर्थः / यत् यस्मात् , तदा तकाले, तत्र स्वयंवरे न अभूम भैम्या नले बृतेऽपि एतत्समयापयोगि, आलोचितं विचारं पुनः / भावे क्तः / शृगुत आकर्णयत // 136 // ( दमयन्ती-परिणयरूप ) कर्मके समाप्त हो जानेपर हम क्या करें ? ( परस्त्रो दमयन्ती के साथ मुझे कुछ नहीं करना चाहिये, इसोसे तदिषयक इच्छा को मैंने छोड़ दिया है ), जो हम उस समय ( स्वयंवर कालमें ) नहीं थे ( यदि हम स्वयंवर कालमें उपस्थित होते तो दनयन्तीका विवाह नलके माथ कदापि नहीं होने देते, इस कारण 'गतं न शो वामि' नीतिके अनुसार अतीतके विषयमें पश्चात्ताप करना व्यर्थ है ), किन्तु हे देवो! इस समय समयानुसार मेरे विचारको तुमलोग सुनो // 136 // प्रतिज्ञेयं नले विज्ञाः ! कलेविज्ञायनां मम | तेन भैमीञ्च भूमिश्च त्याजयामि जयामि तम् / / 137 / / प्रतिज्ञेति / विज्ञाः ! हे विबुधाः ! नले नलविषये, कलेः कलियुगाधिदेवस्य, मम ने, इयम एषा, प्रतिज्ञा शपथः, विज्ञायताम् अवधार्यताम् / तामेवाह-तेन नलेन, प्रयोज्येन / भमीञ्च दमयन्तीञ्च, भूमिञ्च राज्यञ्च, त्याजयामि विसर्जयामि, एवञ्च तं नलम्, जयामि आत्माधीनीकरोमि, उभयत्र भविष्यत्सामोप्ये वत्तमान प्रत्ययः। हे विद्वान् ( देवो!) नल के विषय में मुझ कलिकी इस प्रतिज्ञाको तुमलोग मालूम करो कि-'मैं नलसे दमयन्ती तथा पृथ्वी ( राज्य ) को शीघ्र ही छोड़वाऊंगा, ( तथा इस प्रकार ) उस ( नल ) को जीत लूंगा' // 137 // नैषधेन विरोधं मे चण्डतामण्डितौजसः / जगन्ति हन्त गायन्तु रवेः कैरववैरवत् / / 138 / नैपधेनेति / चण्डतामण्डितौजसः क्रौर्योपस्कृततेजसः, मे मम कलेः, नैषधेन नलेन सह, विरोधं वैरम् , रवेः सूर्यस्य, करवः कुमुदैः, वैरवत् शत्रुनातुल्यम , जगन्ति लोकाः, गायन्तु उच्चैर्युष्यन्तु इत्यर्थः / हन्तेति हर्षे / / 138 / / / चण्डता ( दमयन्ती तथा राज्यको छुड़ाकर पीड़ित करनेसे क्रूरता ) से संयुक्त तेजवाले मेरे नलके साथ विरोधको तीनों लोक उस प्रकार गावे ( उच्च स्वरसे कहें , जिस प्रकार तीक्ष्णतासे संयुक्त तेजवाले सूर्यके कुमुदोंके साथ विरोधको तीनों लोक गाते हैं; हन्त-खेद है ! ( अथवा-इस प्रकार नलका विजय करनेसे हर्ष है)। [ यद्यपि हीनतेजा होनेसे अयोग्य नल के साथ मुझे विरोध करना तीनों लोकोंमें अपयश ही होगा तथापि खेद है कि-नलके