________________ 154 नैषधमहाकाव्यम् / भीम राजाने दहेजमें नलके लिए दे दिया; मित्र कुबेरसे प्राप्त जिसको शिवजीने मित्र राजा 'भीम' के लिए दिया, उसको राजा 'भीम' ने दामाद नलके लिए दिया ] // 16 // बहोर्दुरापस्य वराय वस्तुनश्चितस्य दातुं प्रतिबिम्बकैतवात् / बभौतरामन्तरवस्थितं दधद्यदर्थमभ्यर्थितदेयमर्थिने / / 17 // तत् मणिदामैव वर्णयति बहोरिति / यत् चिन्तामणिदाम, वराय दातुं चित्तस्य राशीकृतस्य, दुरापस्य दुर्लभस्य, बहोः अनेकस्य / भाषितपुंस्कत्वात् पुंवद्भावः / वस्तुतः पदार्थजातस्य, प्रतिबिम्बस्य प्रतिच्छायायाः, कैतवात् मिषात् , अन्तः अभ्यन्तरे, अवस्थितम् अर्थिने याचकाय, अभ्यर्थितः याचितः सन् , देयः देयत्वेन निश्चिततम् अभ्यर्थितदेयम्, अर्थ वस्तुजातं, दधत् धारयन्निव, वभौतराम् अतिशयेन बभौ / 'किमेत्तिङव्ययघादा-' इत्यादिना आमुप्रत्ययः / प्रार्थनामात्रेणेव याचकाय तत्तद्वस्तनां दानार्थ प्रतिबिम्बव्याजात् तत्तद्वस्तुजातमन्तर्धारयतीवेति भावः / अन्न सापह्नः वोत्प्रेक्षा सा च व्यञ्जकाप्रयोगाद्गम्या / / 17 // जो 'चिन्तामणि' माला वर ( नल ) को देने के लिए एकत्रित बहुत-सी दुर्लभ वस्तुओं ( अन्यान्य रत्न, सुवर्ण, वस्त्र, सवारी, दास, दासी आदि ) के अपनेमें प्रतिबिम्बित होने के कपट (व्याज ) से याचना करने पर देने योग्य निश्चित किये गये वस्तु-समूहको धारण करती थी, ( उस 'चिन्तामणि' नामक मालाको नलके लिए राजा भीमने दिया ) / [ नलको दहेज में देने के लिए जो बहुत-सो दुर्लभ वस्तुएँ एकत्रित की गयी थीं, उन सबके उस दिव्य चिन्तामणि मालामें प्रतिबिम्बित होनेसे वह माला ऐसी मालूम पड़ती थी कि याचित इन वस्तुओंको मैं नलके लिए दे दूंगी, अत एव इन वस्तुओंको प्रतिबिम्बित होनेके व्याजसे मैं अपने में धारण कर रही हूं ] // 17 // असिं भवान्याः क्षतकासरासुरं वराय भीमः स्म ददाति भासुराम् / ददे हि तस्मै धवनामधारिणे स शम्भुसम्भोगनिमग्नयाऽनया // 18|| असिमिति / भीमः क्षतकासगसुरं हतमहिषासुरं, 'लुलापो महिषो वाहद्विष. स्कासरसरिभाः' इत्यमरः / भासुरं भास्वरं, भवान्याः दुर्गायाः, असिं खङ्ग, भवान्या भीमाय दत्तमिति भावः / वराय नलाय, ददाति स्म / किमर्थ दुर्गया अस्मै दत्तः ? तत्राह-हि यतः, शम्भुसम्भोगनिमग्नया महिषासुरादिमर्दनानन्तरं निवृत्तरणरागया केवलसुरतसुखासक्तया, अनया दुर्गया, धवस्य स्वप्रियस्य शम्भोः, नामधारिणे 'भीम' इति नामान्तरधराय, इति प्रीतिकरणोक्तिः / 'धवः प्रियः पतिर्भा' इत्यमरः / तस्मै भीमभूभुजे, सः असिः, ददे दत्तः, शत्रुबधानन्तरं निष्प्रयोजनकत्वबुद्धया इति भावः / ददातेः कर्मणि लिट् // 18 // __ भीमने महिषासुरको काटने ( मारने ) वाले दुर्गा ( पार्वती ) के चमकते हुए खड्गको वर (नल ) के लिए दिया, उसे 'पति ( 'भीम, अर्थात् 'शिव' ) के नाम धारण करनेवाले