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योग (१) जैन साहित्य में 'योग' शब्द का व्यवहार अनेक रूपों में हुआ है-अध्यात्मयोग, ज्ञानयोग, संवरयोग, तपोयोग, ध्यानयोग आदि।
धर्म का सकल व्यापार, जो आत्मा को मोक्ष के साथ योजित करता है, वह योग है। धर्म के व्यापार में प्रणिधानविशुद्धि होती है। इसलिए वह योग बनता है। स्थान, कायोत्सर्ग पर्यंकासन, पद्मासन आदि इसके विशेष प्रकार हैं।
मोक्खेण जोयणाओ जोगो सव्वो वि धम्मवावारो। परिसुद्धो विन्नेओ, ठाणाइ गओ विसेसेणं ।।
योगविंशिका प्रकरण गा. १
१ जनवरी २००६
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