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निर्दोष है और मरता है वह भी निर्दोष है, जो बचाए वह भी निर्दोष है!
सभी दुःखों का मूल अज्ञान है। अज्ञान से कषाय हैं और कषाय ही रात-दिन कचोटते हैं!
ज्ञान मिलने के बाद जप-तप क्रियाएँ वगैरह साधनों की ज़रूरत नहीं रहती। मात्र ज्ञानी की आज्ञा में ही रहें, तो हो जाता है मोक्ष!
ज्ञानी मिलें, तभी अंतर का भेदन होता है और तभी अंदर का सबकुछ दिखता है, और उससे छूटा जा सकता है।
आत्मा के अनुभव की बातें ज्ञानी के पास से सुनकर बुद्धि ग्रहण कर लेती है। परन्तु वह भी ज्ञानी का प्रत्यक्ष सुनकर जो बुद्धि सम्यक् हुई हो, वही ग्रहण कर सकती है, नहीं तो कान तक ही जाता है। ज्ञानी की वाणी परमात्मा को स्पर्श करके निकली हुई होती है, इसलिए आवरण भेदकर सामनेवाले को स्पर्श करती है और मन-बुद्धि-चित्त-अहंकार सभी उसे ग्रहण कर लेते हैं। और बाकी सबकी वाणी मन को स्पर्श करके निकलती है, इसलिए वह सिर्फ मन को ही स्पर्श करती है।
अवस्था में तन्मयाकार हो, वहाँ अस्वस्थ हो जाता है, और अविनाशी आत्मा में रहे तो स्वस्थ ही रहेगा हमेशा! आत्मा पौद्गलिक अवस्था को जानता है और आत्मा स्वयं अपने आप को ही देखता है। इसलिए सभी आवरण बिंध जाते हैं और सबकुछ शुद्ध हो जाता है!
ज्ञानी निरंतर देह से अलग ही रहते हैं। उसके ज्ञाता-दृष्टा ही रहते हैं, इसलिए उन्हें कोई दुःख स्पर्श ही नहीं करता। आत्मा का स्वभाव ही नहीं कि उसे कोई दुःख स्पर्श करे!
मार पड़े तब पूरी रात जगकर इन्वेन्शन (खोजबीन) करे, वह प्रगति करता है। ठंडक में पड़े हुए की प्रगति रुक जाती है।
मोक्ष में जाने का हर एक जीव को अधिकार है। मात्र, ज्ञानी की शरण में जाना पड़ता है।
इस काल में अक्रम विज्ञान, मोक्ष की अंतिम गाड़ी है, जो भी इस
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