Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 14
________________ अधिकार में जालोर रहा। ततपश्चात् दिल्ली के बादशाहों की प्रसन्नता से १२ मलेकखान को सत्ता प्राप्त हो गई। उसके बाद १३ गजनीखान (द्वितीय) १४ पहाड़खान (प्रथम ) शासक हुआ । ईस्वी सन १६१८ से १६८० तक दिल्लीपति जहाँगीर आदि बादशाहों की हकूमत रही और दिल्ली से भेजे हुए हाकिम जालोर पर शासन करते रहे। इनके नाम क्रमशः इस प्रकार हैं (१) महाराजा सूरसिंह राठौड़ ( सन् १६१८ से १६२०), (२) सीसोदिया राणा भीम सिंह ( सन् १६२०-२१) (३) महाराजा गजसिंह राठौड़ (सन् १६२१ से १६३८ ), (४) नवाब मीरखान (सन् १६३८ से १६४३ तक), (५) नवाबफेज अलीखान (सन् १६४३), (६) हंसदास राठौड़ (सन् १६४३ से १६५५ तक ) (७) महाराज जसवंतसिंह राठौड़ ( सन् १६५५ से १६७९) और (८) महाराज सुजानसिंह ( १६७९-८० ) इस प्रकार ६४ वर्ष जालोर बादशाह के अधीन रह कर सन् १६८० दिवान कमालखान ( करण कमाल ) के भ्राता फतेहखान के अधीन हो गया। इसके पश्चात् सन् १६९७ में दुर्गादास राठौड़ के उपकारों के बदले औरंगजेब बादशाह ने जालोर की जागीर अजितसिंह राठौड़ को सौंप दी। उसके बाद जालोर की यह जागीर जोधपुर राज्य के अन्तर्गत रही। ऐतिहासिक साधनों से विदित होता है कि जालोर पर बीच बीच में दिल्ली और गुजरात के बादशाहों का भी वहां वर्चस्व रहा है। गयासुद्दीन सुलतान और गुजरात के महम्मद बेगड़ा के दो अभिलेख मिलते हैं। स्वर्णगिरि दुर्ग पर जिनालय के निकट एक मस्जिद है जिस पर फारसी में एक लेख खुदा है जिससे पाया जाता है कि इसे गुजरात के सुलतान मुजफ्फर ( दूसरा ) ने बनवाया था। सोलहवीं शताब्दी में राव मालदेव ( जोधपुर ) का अधिकार हुआ और अब्दुर्रहीम खानखाना ने फिर गजनीखान से कब्जा ले लिया था। हिन्दू काल में बने हुए अनेक विशाल और कलापूर्ण जैन मन्दिर और शिवालय आदि मुस्लिम शासन के समय नष्ट 'म्रष्ट कर दिए गए और जालोर की प्राचीन गरिमा को समाप्त करने के साक्षी स्वरूप अब भी नगर के मध्य स्थित 'तोपखाना' अपने कलेवर में कितने ही मन्दिरों के भग्नावशेष समाये बैठा है। आक्रान्ता मुसलमानों ने यहाँ के कई मन्दिर नष्ट किए और क्षतिग्रस्त किए जिनका लेखा जोखा लगाना कठिन है। कितने ही मन्दिरों की अद्भुत कलापूर्ण शिल्प समृद्धि को उखाड़ कर मस्जिदों के निर्माण में प्रयुक्त किए गए। किले की

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