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प्रवेश कराया एवं चंत्य परिपाटी प्रभावनादि श्री संघ ने की । आदि स्थानीय लोग यात्री संघ में सम्मिलित हुए ।
सा० महराज
सं० १३८१ में पत्तन में श्री जिनकुशलसूरिजी ने विशाल प्रतिष्ठा कराई थी जिसमें जावालिपुर के मंत्री भोजराज पुत्र मं० सलखणसिंह रंगाचार्य लक्षण आदि सम्मिलित हुए । इनमें जावालिपुर के लिए श्री महावीर स्वामी आदि प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा हुई थी । उसी वर्ष फिर भीमपल्ली से विशाल यात्री संघ निकाला जिसमें जावालिपुर वास्तव्य सा० पूर्णचन्द्र सा० सहजा आदि सम्मिलित हुए थे ।
सं० १३८३ में जावालिपुर संघ की बीनती से श्री जिनकुशलसूरिजी महाराज बाहड़मेर से विहार कर लवणखेटक, सम्यानयन होते हुए जालोर पधारे। यहां का संघ नाना प्रकार के उत्सव करने को प्रस्तुत था और सूरिजी का प्रवेशोत्सव बड़े समारोहपूर्वक कराया । तीर्थाधिराज श्री महावीर प्रभु के चरणों में वन्दन किया । मंत्रीश्वर कुलधर के पुत्र मं० भोजराज के पुत्र मं ० सलखणसिंह सा० चाहड़ पुत्र सा० झांझण प्रमुख संघ की वीनति से नाना नगरों के संघ की उपस्थिति में महान् उत्सवों का प्रारम्भ हुआ । दश-पन्द्रह दिन पहले से दीक्षार्थियों के उत्सव, ताल्हारास, स्वर्ण रजत- वस्त्र - अन्न दान, गीत-गान संघ पूजा स्वधर्मीवात्सल्यादि के साथ साथ अमारि उद्घोषणा द्वारा नाना धार्मिक प्रभावना के कार्य सम्पन्न हुए । सं० १३८३ फाल्गुन बदि ९ के दिन प्रतिष्ठा, व्रतग्रहण, मालारोपण, सम्यक्त्वारोप, नन्दी महोत्सवादि विधान हिन्दु-मुस्लिम सबके चित्त को चमत्कृत करने वाले निर्विघ्न सम्पन्न हुए । राजगृह महातीर्थ के वैभारगिरि पर स्थापनार्थं ठ० प्रतापसिंह के पुत्र ठ० अचल कारित चतुर्विंशति जिनालय के मूलनायक योग्य महावीर स्वामी आदि की अनेक पाषाण व धातु निर्मित प्रतिमाएं, गुरुमूत्तियाँ व अधिष्ठायकादि की प्रतिष्ठा हुई । न्यायकीत्ति, ललितकीत्ति, सोमकीर्ति, अमरकीत्ति, नमिकीत्ति, देवकीत्ति ६ मुनियों को दीक्षित किया | अनेक श्रावक-श्राविकाओं ने माला, सम्यक्त्वादि व्रत, द्वादश व्रत अङ्गीकार किए ।
युगप्रधानाचार्य गुर्वावली के प्रताप से हमें जालोर के इतिहास सम्बन्धी महत्त्वपूर्ण इतनी जानकारी मिल सकी है इसके पश्चात् कोई व्यवस्थित इतिहास उपलब्ध नहीं है ।
श्री जिनभद्रसूरिजी महाराज एक महान् प्रभावक आचार्य हुए हैं जिन्होंने जैसलमेर आदि अनेक स्थानों में ज्ञान भण्डार स्थापित किए थे । श्री समय
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