Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

View full book text
Previous | Next

Page 94
________________ १० धावक धर्म विधि वृहद् वृत्ति – इसे १५१३१ श्लोकों में श्रीलक्ष्मीतिलकोपाध्याय ने सं० १३१७ माघ सुदि १४ के दिन जालोर में रचा। यह मूल प्रकरण श्री जिनेश्वरसूरि कृत है। प्रशस्ति गत निम्नोक्त २ श्लोक उद्धत किये जाते हैं - "श्रीबीजापुर-वासुपूज्य भवने हेमःसदण्डो घटो, यत्रारोप्य थ वीर चैत्य मसिधत् श्री भीमपल्यां पुरि । तस्मिन् वैक्रम वत्सरे मुनि शशि व्रतेन्दु माने (१३१७) चतुदश्यांमाघ सुदीह चाचिगनृपे जावालिपुर्यां विभौ ॥ वीराहद-विधि चैत्य मण्डन जिनाधीशां चतुर्विशतिसौधेषु ध्वजदण्ड-कुम्भ पटली हैमी महिष्ठेमहैः । श्रीमत्सूरि जिनेश्वराः युगवरा प्रत्यष्ठ रस्मिन् क्षणे, टीकाऽलङ्क ति रेषिकाऽपि समगात् पूत्ति प्रतिष्ठोत्सवम् ॥ अर्थात्-जिस वर्ष बीजापुर के वासुपूज्य जिनालय पर सुवर्णदण्ड एवं स्वर्ण कलश चढ़ाये गए और जिस वर्ष में भीमपल्लीपुर में वीर प्रभु का चैत्य सिद्ध हुआ, उस विक्रम संवत् १३१७ में माघसुदि १४ के दिन यहाँ जावालिपुर-जालोर में चाचिग राजा के राज्यकाल में वीर जिनेश्वर के विधि-चैत्य के मण्डन रूप चौवीस जिनेश्वरों के मन्दिरों पर बड़े महोत्सव पूर्वक युगप्रधान श्री जिनेश्वरसूरि ने ध्वजा दण्ड के साथ स्वर्ण-कलशों की प्रतिष्ठा की। उसी क्षण यह टीका रूपी अलंकार भी परिपूर्ण प्रतिष्ठित हुआ। ११. श्रावकदिनचर्या-संवेगरंगशाला नामक १८००० श्लोक परिमित महान् ग्रन्थ के रचयिता श्री जिनचंद्रसूरिजी जब जावालिपुर पधारे तो उन्होंने "चीवंदणमावस्सय" आदि गाथाओं का व्याख्यान श्रावक संघ के समक्ष किया। इसमें जो सैद्धान्तिक संवाद आये वे सूरिजी के शिष्य ने लिख लिए जिससे ३०० श्लोक परिमित दिनचर्या' ग्रन्थ तैयार हो गया जो श्रावकों के लिए बड़ा उपकारी है। . १२. निर्वाणलीलावती कथा सार-श्री जिनेश्वरसूरिजी द्वारा सं० १०९२ में रचित निर्वाणलीलावती कथा के सार रूप श्री जिनरत्नसूरि ने सं० १३४१ में जावालिपुर में इस ग्रन्थ की रचना की जिनकी २६७ पत्र की कागज पर लिखी प्रति (क्रमाङ्क ३५१ ) में जेसलमेर भंडार में है जिसमें निम्न उलेख है [ ६९

Loading...

Page Navigation
1 ... 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134