Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 133
________________ १३-सं० १३२३ मार्गशीर्ष शुक्ल ५ बुधवार को चाहमान महाराजा चाचिगदेव के राज्य काल में महामात्य यक्षदेव जो उसका मुद्राधिकारी था-के समय नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध महाराज श्री चंदन विहार में धनेश्वरसूरि के विजय शासन में तेलहरा गोत्रीय महं० नरपति ने अपने निर्माण कराये हुए जिन युगल की पूजा के निमित्त मठपति व गौष्टिक के समक्ष ५० द्रम्म महावीर स्वामी के भंडार में प्रदान किये जिसके व्याज अर्द्ध दम्म प्रतिमास की आमदनी से पूजा कराई जाय, ये उल्लेख है। यह लेख भी तोपखाना. के जनाना गेलेरी में है । १४-सं० १८६३ ( शक सं० १७२८ ) फाल्गुन शुक्ल १२ भृगुवार के दिन महाराजाधिराज श्री मानसिंह जी और महाराज कुमार श्री छत्रसिंह जी के विजय राज्य में जालोर दुर्ग में श्री गौड़ी पार्श्वनाथ भगवान का यह प्रासाद वृहत्खरतर गच्छीय युग प्रधान भट्टारक श्री जिनहर्षसूरि जी ने प्रतिष्ठित किया ओसवाल वंश के बंदा ( मेहता ) गोत्रीय मुख्य मंत्री मुहता अखयचंद्र ने अपने पुत्र लक्ष्मीचंद सहित इस प्रासाद का निर्माण कराया। सोमपुरा कारीगर काशीराम ने बनाया। यह लेख जालोर से पश्चिमोत्तर कोण में लाल दरवाजे से चारफलाँग दूर परकोटे के बीच बने हुए गौड़ी पार्श्वनाथ जिनालय के चरणों में पर खुदा हुआ है। प्राचीन जैन लेख संग्रह ( जिनविजय ) के लेखांक ६६ में लूणिवनसही शिलालेख की पंक्ति १३-१४ में ॥ "श्री जावालिपुरे श्री पार्श्वनाथ चैत्य जगत्यां श्री आदिनाथ बिंबदेव कुलिका च" फिर पंक्ति ३३ में-"श्री जाबालिपुरे श्री सौवर्णगिरौ श्री पार्श्वनाथ जगत्यां अष्टापद मध्ये खत्तकद्वयं च" ॥ ये नागपुरीय बरहुडिया परिवार द्वारा अनेक स्थानों के मंदिरादि निर्माण का उल्लेख है-राहड़ के पुत्र जिनचन्द्र भार्या चाहिणी के पुत्र देवचन्द्र ने पितामाता के श्रेयार्थ बनाया था। १०८ ]

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