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सं० १२९१ मिती बैशाख सुदि १० को जावालिपुर में यतिकलश, क्षमाचन्द्र, शीलरत्न, धर्मरत्न, चारित्ररत्न, मेघकुमार गणि, अभयतिलक गणि, श्रीकुमार तथा शीलसुन्दरी गणिनी और चन्दनसुन्दरी की दीक्षा सम्पन्न हुई । मिती ज्येष्ठ बदि २ मूलार्क में श्री विजयदेवसूरि को आचार्य पद दिया गया ।
सं • १२९८ वैशाखी एकादशी को जावालिपुर में महं० कुलचन्द्र ने समुदाय सहित गुणचन्द्र द्वारा स्वर्णमय दण्ड- ध्वजारोपण सम्पन्न किया ।
सं० १२९९ मिती प्रथम आश्विन बदि २ को महामंत्री कुलघर ने समस्त राजलोक व नागरिकों को आश्चर्यान्वित करने वाली, महा महोत्सव के साथ उल्लासपूर्वक भागवती दीक्षा स्वीकार की । सूरिजी द्वारा मंत्रीश्वर का दीक्षा नाम कुलतिलक मुनि प्रसिद्ध किया गया ।
सं० १३१० वैशाख सुदि ११ को चारित्रवल्लभ, हेमपर्वत, अचलचित्त, लाभनिधि, मोदमन्दिर, गजकीत्ति, रत्नाकर, गतमोह, देवप्रमोद, वीराणंद, विगतदोष, राजललित, बहुचरित्र, विमलप्रज्ञ, रत्ननिधान - पन्द्रह साधुओं की दीक्षा सम्पन्न हुई । इनमें चारित्रवल्लभ और विमलप्रज्ञ पिता-पुत्र थे ।
इसी वैशाखी १३ स्वाति नक्षत्र शनिवार को श्री महावीर स्वामी के विधिचैत्य में राज श्री उदयसिंहदेवादि राजपुरुषों व मंत्री जैत्रसिंह आदि राजमान्य व्यक्तियों तथा प्रल्हादनपुरीय, वागड़ देशीय समस्त समुदाय की उपस्थिति में चतुर्विंशति जिनालय, सप्ततिशत ( १७० ) जिन, सम्मेतशिखर नन्दीश्वर, तीर्थङ्कर मातृपट्ट, हीरा सम्बन्धी श्री नेमिनाथ, उज्जयिनी के लिए श्री महावीर स्वामी, चन्द्रप्रभ, शान्तिनाथ, व श्रेष्ठि हरिपाल के निर्मापित सुधर्मास्वामी, श्रीजिनदत्तसूरि, सीमंधर स्वामी, युगमंधर स्वामी आदि नाना प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा सम्पन्न की । प्रमोदश्री गणिनी को महत्तरापद देकर लक्ष्मीनिधि नाम रखा एवं ज्ञानमाला गणिनी को प्रवर्तिनी पद दिया ।
संवत् १३१३ फाल्गुन सुदि ४ को जावालिपुर - स्वर्णगिरि पर वाहित्रिक उद्धरण प्रतिष्ठापित श्री शान्तिनाथ प्रतिमा की महाप्रासाद ( बड़े मन्दिर ) में स्थापना की । मिती चैत्र सुदि १.४ को कनककीति, विबुधराज, राजशेखर, गुणशेखर, साधु एवं जयलक्ष्मी, कल्याणनिधि, प्रमोदलक्ष्मी और गच्छवृद्धि साध्वियों की बड़ी दीक्षा हुई । इसके बाद वैशाख बदि १ को श्री अजितनाथ प्रतिमा की प्रतिष्ठा की । इन्हें पद्र, मूलिंग ने प्रचुर द्रव्य व्यय पूर्वक द्वितीय देवगृह में स्थापित की ।
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