Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 93
________________ X X X वंद सामिउ पास - जिणु, जालउरागिरि कुमर विहारि ॥ ४९ ॥ अंति - वाला मंत्रि तणइ पाछोपs, वेहल महिनंदन महिरोपइ ? तसु सक्खहं कुलचंद फलु, तसु कुलि आसाइत अच्छंतु । तसु वलहिय पल्ली पवर, कवि आसिगु बहुगुण संजुत्त ॥५१॥ सातउ परिया कवि जालउरउ, माउसालि सुम्मइ सोयलरउ । आसी दव दोही वयण, कवि आसिगु जालउरह आयउ सहजिगपुर पासह भवणि, नवउ रासु इहु तिणि निष्पाइ ॥५ ॥ संवत बारह सय सत्तावन्नइ (१२५७), विक्कम कालि गयइ पडिपुन्नइ । आसोयहँ सिय-सत्तमिह हत्थो हत्थ जिण निष्पायउ । संतिसूरि-पय- भत्तयरि, रयउ रासु भवियहँ मण मोहणु ॥ ५३ ॥ ७. चंदनबाला रासु – यह रास भी उपर्युक्त कवि आसिगु की रचना है । अंत - एहु रासु पुण वृद्धिहि जंती, भाविह भगतिहि जिणहरि दिती | पढ पढावइ जे सुणइ, तह सवि दुक्खईँ खइयह जंती ॥ जालउर-नयरि आसिगु भणइ, जम्मि जम्मि तूसउ सरसत्ती ॥ ३५॥ - ८. प्रबुद्ध रोहिणेय नाटक - सं० १२६८ वादिदेवसूरि प्रशिष्य रामभद्र e ९. शांतिदेव रासु - यह रचना सं० १३१३ में लक्ष्मीतिलकोपाध्याय ने की। जालोर के राजा उदयसिंह के राज्य में स्वर्णगिरि पर फाल्गुन सुदि ४ को श्री जिनेश्वरसूरि द्वारा महोत्सव पूर्वक स्थापना करने का उल्लेख निम्नोक्त गाथाओं में है - ६८ ] उदर्यांसह रज्जि सोवनगिरी जालउर उवरि सो संति ठाविउ जिणेसरसूरी पवर-पासाय ममि संक्च्छरे फग्गुण - सिय- चउत्थि तेरहइ तेरुत्तरे ॥४८॥ - जेम इंदिहि जेम इंदिहि लच्छि - विच्छडि.. नेऊण सोवन्नगिरि संतिनाहु जम्मक्खणि न्हाविउ । तिम गुरुयाडंबरिण सिरि-सुवन्नगिरि-उवरि ठाविउ ॥ जयसिंह इंद-मुह, इंदहि न्हाविज्जंतु । सयल संघ-दुरियइ हरउ, संतिनाहु अइकंतु ॥ ४९ ॥

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