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श्री विजयनेमिसूरि ज्ञानभंडार अहमदाबाद में 'श्रावक धर्म प्रकरण' की सचित्र ताडपत्रीय प्रति है जिसकी रचना सं० १३१३ दशहरे के दिन पालनपुर में श्री जिनेश्वरसूरि जी महाराज ने की थी। उस पर आचार्य श्री के शिष्य लक्ष्मीतिलकोपाध्याय ने सं० १३१७ मा० शु० १४ को जावालिपुर (जालोर) में पन्द्रह हजार श्लोक परिमित वृहद्वृत्ति रची है जो अद्यावधि अप्रकाशित है । प्रस्तुत ग्रन्थ की काष्ठपट्टिकाओं पर अति सुन्दर चित्र बने हुए है। जो उसी प्रति के हैं और लगभग उसी अरसे में चित्रित हुए हैं। जिस दिन यह टीका पूर्ण हुई उसी दिन जालोर के श्री महावीर स्वामी ( चौबीस जिनदेवगृहिका युक्त) जिनालय पर स्वर्ण कलश दण्ड ध्वजारोपण सर्व समुदाय ने कराया था। उससे दो दिन पूर्व लक्ष्मीतिलक गणि को उपाध्याय पद और पद्माकर मुनि की दीक्षा हुई थी। युग प्रधानाचार्य गुर्वावली में उपाध्यायजी की दीक्षा सं० १२८८ में हुई लिखी है जिससे उनका जन्म स्थान भी जालोर संभवित है।
प्रस्तुत 'श्रावक धर्म प्रकरण वृत्ति' की प्रति लिखवाने वाले श्रावकों के चित्र इसमें होने से तथा जिनालय का चित्र होने से यह प्रति बड़ी महत्त्वपूर्ण है। यद्यपि प्रशस्ति वाले अन्तिम पत्र नष्ट हो गये किन्तु बचे खुचे टुकड़ों से जावालिपुर के द्वितीय जिनराजाष्टाह्निका, वीरभवने स्वश्रेयसे अष्टान्हिका चैत्र मासि चतुर्थिका तथा स्वर्णगिरि पर स्वजननी धेयोर्थ अष्टान्हिका चैत्र मासि तृतीयिका..." के उल्लेख के सिवा और कुछ नहीं मिलता।
शान्तिनाथ चरित्र के चित्रोंवाली प्रस्तुत ताड़पत्रीय प्रति की काष्ठपट्टिका द्वय में दूसरी काष्ठपट्टिका के पृष्ठ भाग में जिनालय के पास तीन पुरुषों और तीन स्त्रियों की आकृतियां चित्रित हैं जिनका परिचय इस प्रकार लिखा है-"श्री जवालिपुरे स्वर्णगिरी श्री शान्तेविधि चैत्ये ॥ गो देदउ ॥ गो ऊदा गो० रामदेव" इनके नीचे कक्ष में तीन श्राविकाएं चैत्यवंदन कर रही हैं। उनके नाम "जयतल। नेहडही । राम्वसिरी।" ये तीनों भाइयों की धर्म-पत्नियां होंगी।
___ गणिवर्य श्री शीलचन्द्रविजयजी ने चित्र के प्रस्तुत अन्तिम विभाग का परिचय इस प्रकार दिया है—काष्ठपट्टिका के अन्तिम खण्ड में अभी एक सुन्दर दृश्य हम देख सकते हैं। इस अन्तिम दृश्य में प्रथम एक नक्कासीदार शिखर से विभूषित जिन मन्दिर है। इसके शिखर पर पीले रंग का अर्थात् स्वर्णमय ध्वज-दण्ड और कलश प्रतिष्ठित है। जिनमन्दिर में एक जिनमूर्ति है। यह जिन मन्दिर जावालिपुर ( जालोर) के निकटवर्ती जैन तीर्थ भूमि रूप श्री स्वर्णगिरि की पहाड़ी पर के शान्तिनाथ भगवान के चैत्य की प्रतिकृति है। ऐसा काष्ठपट्टिका पर लिखित उल्लेख पढ़ने
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