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जालोर के मंत्री आभू, अभयद
और अंबड़
माण्डवगढ़ के सुप्रसिद्ध विद्वान और साहित्यकार मंत्री मण्डन और धनदराज आदि ने केवल माण्डवगढ़ मालवा में ही नहीं अपनी सत्प्रवृत्तियों द्वारा उनके व उनके पूर्वजों की महान् सेवाओं का उल्लेख उनकी प्रशस्तियों आदि में पाया जाता है। उनका गोत्र सोनिगिरा-श्रीमाल वंश जालोर-सुवर्णगिरि से ही सम्बन्धित था। जालोर में उनके पूर्वजों की सेवाओं का उल्लेख कवि महेश्वर कृत 'काव्य मनोहर' महाकाव्य के सप्तम सर्ग में इस प्रकार है -
यदुद्भवाः पुण्यधियो महान्तः कीर्त्यञ्चिता जीवदया कुलाङ्काः । नन्दन्ति जन्याः स तु लोक मध्ये श्रीमाल वंशो जयति प्रकामम् ॥२॥ गोत्रे स्वर्णगिरीयके समभव ज्जावाल सत्पत्तने, ह्याभूरित्यभिधान भृन्मतिमतां वर्यः प्रधानेश्वरा । श्री सोमेश्वर भूभुजः प्रतिदिनं यातोन्नतिः ख्याति ते, व्यापारे निखिले सुकीत्ति विमले लोकोत्सवालङ्कृते ॥३॥ तस्यात्मजस्त्वभयदो ऽभवदन वंशे ह्यानंदनाम नृपतेः सकलं प्रधानम् । चातुर्य निर्मल गुणोत्तम कर्मकोत्तिः सद्यायकोध सततामित दत्तभूतिः ॥४॥ . यो गूजरान्नुपवराद्विजय श्रियंवै लेभेऽममित्र इह धैर्य गुण प्रशस्तः । जावालनाम्नि नगरे स बभूववर्ये श्रीमनिकेतन विभासित दिग्विमागे ॥५॥ तस्माद भू दम्बड़ नाम धेयः स्व विक्रमै स्तज्जित बैंरिवर्गः । यो ऽरोपयत्स्वर्णगिरी गरिष्ठे राजन्य वयें वर विग्रहेशम् ॥६॥
अर्थात्-श्रीमाल वंश के स्वर्णगिरीयक ( सोनगरा) गोत्र में जावालपत्तन (जालोर ) में आभू नामक प्रतापी पूर्वज हुआ वह बुद्धिमान था और राजा सोमेश्वर का मूख्य मंत्री था। आभू का पुत्र अभयद हुआ जो आनंद नामक राजा का मुख्य मंत्री था और उसने गूर्जर राज पर विजयश्री प्राप्त की थी। यह जालोर में प्रसिद्ध हुआ था इसके पुत्र अंबड़ ने सुवर्णगिरि पर विग्रहेश (वीसलदेव) को स्थापित किया।
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