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सा० हेमचन्द्र ने अपनी माता राजू के लिए दो हजार द्रम्म देकर माला ग्रहण की। सब मिला कर श्री संघ ने वहां २३००० द्रम्म सफल किए।
इस प्रकार स्थान-स्थान पर प्रवचनादि धर्म प्रभावना द्वारा जन्म सफल करते विधि-संघ के साथ निर्विघ्न महातीर्थों की यात्रा करके श्री जिनप्रबोधसूरिजी आदि चतुर्विध संघ समन्वित सा० क्षेमसिंह ने मिती आषाढ़ सुदि १४ को देवालय सहित जावालिपुर में प्रवेश महोत्सव सम्पन्न किया।
संवत् १३३९ में अनेक नगर के संघों के साथ श्री जिनप्रबोधसूरिजी श्री जिनरत्नाचार्य, देवाचार्य, वाचनाचार्य विवेकसमुद्रादि मुनि-मण्डल परिवृत आबूजी की यात्रा करके जावालिपुर पधारे। समस्त संघ का प्रवेशोत्सव बड़े धूम-धाम से हुआ। इसी वर्ष ज्येष्ठ बदी ४ को जगच्चन्द्र मुनि, कुमुदलक्ष्मी, भुवनलक्ष्मी साध्वियों की दीक्षा हुई। पंचमी के दिन चन्दनसुन्दरी गणिनी को महत्तरा पद से विभूषित किया। उनका नाम चन्दनश्री हुआ। इसके बाद श्रीसोम महाराजा की वीनती से पूज्य श्री ने समियाणा में चातुर्मास किया। तत्पश्चात् महाराजा श्री कर्ण के सैन्य-परिवार सहित सामने आने पर सं० १३४० में फाल्गुन चौमासी पर जैसलमेर पधारे। अक्षय तृतीया को अष्टापद प्रासाद की बिम्ब व ध्वजादण्ड की प्रतिष्ठा में श्री जावालपुर का संघ भी सम्मिलित हुआ था।
भगवान महावीर के शासन की प्रभावना करने वाले श्री जिनप्रबोधसूरिजी महाराज के देह में दाहज्वर हो गया, तब आपने ध्यान बल से अपना आयु अल्प ज्ञात कर अविच्छिन्न प्रयाण से जावालिपुर पधारे। श्री महावीर स्वामी के महातीर्थ में समस्त लोगों के चित्त को चमत्कार पैदा करने वाले प्रवेशोत्सव में नाना प्रकार के वाजित्र, गीत-गान और धवल-मङ्गल पुराङ्गनाओं द्वारा नृत्य और दीन दुखियों को महादान देने का आयोजन था। सूरि महाराज ने अक्षय-तृतीया के दिन अपने पट्ट पर बड़े भारी महोत्सव पूर्वक श्रीजिनचन्द्रसूरि को स्थापित किया। इसी दिन राजशेखर गणि को वाचनाचार्य पर दिया। तदनन्तर वैशाख सुदि ८ को सकल संघ के साथ विस्तारपूर्वक मिथ्यादुष्कृत दिया और चढते हुए शुभ परिणामों में स्थिर रह कर भावना भाते हुए देव-गुरु के चरणों में सद्ज्ञान पूर्वक आराधना करते स्वमुख से पंच परमेष्टी महामंत्र उच्चारण करते हुए मिती बैशाख शुक्ल ११ को पूज्य सूरि महाराज श्री जिनप्रबोधसूरिजी स्वर्गवासी हुए।
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