________________
जावालिपुर लौटा और विस्तारपूर्वक प्रवेशोत्सव हुआ । इसमें सा० सलखण श्रावक के पुत्ररत्न सा० सीहा का अच्छा योगदान रहा ।
सं० १३५४ मिती ज्येष्ठ बदि १० को जावालिपुर में श्री महावीर विधि चैत्य में सा० सलखण के पुत्र सा० सीहा की ओर से दीक्षा - मालारोपणादि महोत्सव आयोजित हुए, जिसमें वीरचन्द्र, उदयचन्द्र, अमृतचन्द्र साधु और जयसुन्दरी साध्वी की भागवती दीक्षा सम्पन्न हुई ।
सं० १३६१ में पूज्य श्री ने शम्यानयन ( सिवाणा ) के शान्तिनाथ विधि चैत्य में प्रतिष्ठा महोत्सव कराया जिसमें जावालिपुरीय संघ भी सम्मिलित हुआ था ।
जावालिपुरीय संघ की अभ्यर्थना से श्री जिनचन्द्रसूरिजी ने पधारकर भगवान महावीर को वन्दन किया । संवत् १३६४ वैशाख कृष्ण १३ को मं० भुवनसिंह, सा० सुभट, मं० नयनसिंह, मं० दुसाज मं० भोजराज और सा० सीहा आदि समस्त संघ के प्रोत्साहन से पूज्य श्री ने राजगृहादि महातीर्थों को नमस्कार करके आने पर वा० राजशेखर गणि को आचार्य पद से विभूषित किया गया ।
सं० १३६७ में श्री जिनचन्द्रसूरिजी के तत्वावधान में भीमपल्ली से शत्रु ंजयादि तीर्थ-यात्रा के हेतु महान् संघ निकला, जिसमें जावालिपुर का संघ भी सम्मिलित हुआ था और यहाँ के प्रधान महाजन सा० देवसीह सुत सा० थाणलनन्दन सा० कुलचन्द्र, सा० देदा सुश्रावकों ने दोनों महातीर्थों पर इन्द्र पद आदि ग्रहण कर प्रचुर द्रव्य सार्थक किया था ।
सं० १३७१ में श्री जिनचन्द्रसूरिजी महाराज श्री संघ की गाढ अभ्यर्थना से जावालिपुर पधारे और मिती ज्येष्ठ बदि १० को मं० भोजराज, देवसिंह आदि समस्त संघ द्वारा दीक्षा - मालारोपण - नन्दी महोत्सव आदि का समारोह आयोजित हुआ । देवेन्द्रदत्त मुनि, पुष्यदत्त, ज्ञानदत्त और चारुदत्त मुनि तथा पुण्यलक्ष्मी, ज्ञानलक्ष्मी, कमललक्ष्मी, मतिलक्ष्मी साध्वियों को भागवती दीक्षा प्रदान की ।
इसके बाद जावालिपुर में म्लेच्छों द्वारा भंग हुआ ।
श्री जिनकुशलसूरि
सं० १३८० में योगिनीपुर - दिल्ली के संघपति रयपति का संघ श्रीजिनकुशल सूरिजी महाराज के नेतृत्व में शत्रुञ्जय महातीर्थ गया । वह विशाल संघ जावालिपुर आया और उसका राजलोक-नागरिक लोगों ने आडम्बर पूर्वक नगर
[ ३५