Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy
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एक पसू२६ नइ कारणिं, निज जीवित नवि गणीया रे, पगिलागी सुर वीनवइ, साचा सुरपति थुणिया२७ रे""जय जय ॥२०॥ अचिरा कूखि सरोवर, राजहंस अवतरिया रे, तीणी अवसरि रागादिकू, श्री जिनइं अवहरिया२८ रे"जय जय ॥२१॥ भवभय भंजन जिन तू सुणी, लंछण मसि२९पगि लागु रे, मिगपति बीहतु मिग सही, हिव मुझ नइ भय भागु रे""जय जय ॥२२॥
तुझ गुण पार न पामीइ, तू साहिब छइं मोरा रे, जे तुम सेव करइ सदा, ते सुख लहइं भलेरा रे "जय जय ॥२३॥ इक 3 • सत पणवीसय १२५ भली, संति सहित जिन प्रतिमा रे, भावधरी जे वांदिसिइं, ते लहसीइ वर पदमा३१ रेजय जय ॥२४॥
॥ ढाल॥
चउथइ जिणहरि हेव, भाव धरी घणु, जास्यु अति ऊलट धरी ए, नमस्यु प्रथम जिणंद, विधि पूरव सदा, तीन पयाहिण स्यु करी ए ॥२५॥
नाभि भूप कुलचंद, माता मरूदेवा उयरि३२ सरोवर हंसलु ए, अवतरिउ जगनाह, त्रिहुं नाणे करी, पूरउ निरमल गुण निलु ए ॥२६॥ पढम जिणंद दयाल, पढम मुणीसर, पढम जिणेसर जगधणी ए, पढम भिखाचर33 जाणि, पढम जोगीसर, पढम राय तू बहुगुणी ए ॥२७॥ आदि जिणेसर देव, मूरति तुम तणी, भविजन नइं सुख-कारिणी ए, रूप तणु नहीं पार, तेजि त्रिभुवन, त्रिभुवन मोहीइ ए ॥२८॥ तू ठाकुर तू देव, तू जगनायक, जगदायक तू जगगुरु ए, माय३४ ताय३५ तू मीत ६, परम सहोदर, परम पुरुष तू हितकरु ए ॥२९॥ ७१ एकोत्तिरि३७ जिण-बिंब, तिणि करि सोभती,रिषभदेव तुझ मूरती ए जे वांदइ नरनारि प्रहउठी. सदा, ते जाणज्यो सुभमती ए ॥३०॥
२६. पशु-कबूतर के २७. स्तवना की २८. अपहरित किया २९. बहाने ३०. एक सौ पचीस ३१. श्रेष्ठ लक्ष्मी ३२. उदर ३३. भिक्षाचर-भिक्षु ३४. माता ३५. पिता ३६. मित्र ३७. इकहत्तर
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