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___ इससे विदित होता है कि सज्जन ही अन्तिम परमार राजा था उसके बाद विग्रहराज के भतीजे पृथ्वीराज द्वितीय का और फिर सोमेश्वर का नाम शिलालेख में है अत: जालोर पर इन्हीं का अधिकार रहा होगा। कवि महेश्वर कृत 'काव्य मनोहर' के अनुसार सोमेश्वर स्वर्णगिरि के राजा थे और उनके बाद उनका पुत्र आनन्द राजा हुआ। इनके राज्यकाल में स्वर्णगिरा श्रीमाल आभू और उसका पुत्र अभयद प्रधान मंत्री हुए। उस समय अभयद द्वारा गूजरात के नृपति पर विजयश्री प्राप्त करने का उल्लेख है । अभयद के पुत्र अंबड़ मंत्री ने स्वर्णगिरि पर विग्रहेश को स्थापित किया। विग्रहेश अर्थात् वीसलदेव समझना चाहिए जो राजा आनन्द का उत्तराधिकारी हुआ। चौहानों की वंशावली में ये नाम बारबार आते हैं अतः प्राचीनकाल में प्रतापी नामों की पुनरावृत्ति होने की प्रथा थी। 'काव्य मनोहर' के श्लोकों का अवतरण आगे स्वर्णगिरिया श्रीमाल मत्रियों के परिचय में दिया जायगा। बिजोल्या के शिलालेख में नाडोल पर भी चौहानों का अधिकार हो गया प्रमाणित है। जालोर पर इसके बाद राजा कात्तिपाल के शासन होने का उल्लेख मिलता है यह कीत्तिपाल आल्हणदेव का पुत्र और केल्हण राजा का लघु भ्राता था। ये भी चौहान थे अतः सं० १२३६ में ये आनन्द या उसके उत्तराधिकारी के गोद आगया हो और इस प्रकार कीत्तिपाल जालोर का राजा हो गया हो यह कल्पना युक्ति संगत प्रतीत होती है। स्वर्णगिरि के नाम से ये सोनगिरा चौहान कहलाने लगे।
इतः पूर्व गुजरात के परमार्हत् चालुक्य महाराजा परमार्हत कुमारपाल के राज्यविस्तार में जालोर, किराडू आदि सुदूर राजस्थान के भाग भी आ गए थे पर वे करद या अधीनता में राज्य करते रहे। सं० १२२१ में स्वर्णगिरि पर महाराजा कुमारपाल के 'कुमर-विहार' नामक पार्श्वनाथ जिनालय निर्माण कराया था। जब गुजरात के चालुक्यों की सत्ता समाप्त हो गई और क्रमशः १ राजा कीत्तिपाल २ समरसिंह ३ उदयसिंह ४ चाचिगदेव ५ सामंतसिंह ६ कान्हड़देव राजा हुए।
आबू की लूणिगवसही की प्रतिष्ठा के समय (सं० १२९३ में ) सम्मिलित होने वाले तीन महामण्डलेश्वरों में जावालिपुर के स्वामी भी होने का कवि जिनहर्ष ने वस्तुपाल चरित्र में उल्लेख किया है यतः
"श्री जावालिपुर स्वामी नडूल नगरेश्वरः। चन्द्रावतीपुरी स्वामी वयोऽमी मण्डलेश्वरा ॥" "राज्ञः समरसिंहस्य । पुत्र मानवताग्रणीः श्रीमानुदसिंहोस्ति प्रथितः पृथिवीपतिः ॥७॥"