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स्वर्णगिरि के जिनालय
१. भगवान महावीर स्वामी का मन्दिर-तीर्थ धाम का यह मुख्य मन्दिर विशाल, भव्य और रमणीक है मूल गर्भगृह, गूढमण्डप, नौचौकी, विशाल सभा मण्डप, शृंगार चौकी और उन्नत शिखर युक्त भव्य रचना वाला है। इसमें मूल नायक भगवान की २ हाथ ऊंची श्वेत वर्णी प्रतिमा है। जिस पर सं० १६८१ में श्री विजयदेवसूरिजी के आज्ञानुवर्ती श्री जयसागरगणि द्वारा प्रतिष्ठा कराने का लेख है। मंत्री जयमल मुहणोत ने इसका जीर्णोद्धार करवाया था। उससे पहले जो मूलनायक भगवान की प्राचीन प्रतिमा थी वह बाह्य मण्डप के गवाक्ष में रखी हुई है। प्राचीन 'यक्षवसति प्रासाद' इसे ही माना जाता है क्योंकि इसमें गूढ मण्डप, प्रेक्षा मण्डप, गवाक्ष आदि के भाग जीर्णोद्धार के समय के लगते हैं किन्तु पाषाण और उनकी कोरणी, मूल शिखर का भाग तो प्राचीन अर्थात् १३वीं शती के पश्चात् का नहीं प्रतीत होता। महाराजा कुमारपाल ने जब कुमार विहार का निर्माण कराया उसी समय इस मन्दिर का भी जीर्णोद्धार कराया था। अन्तिम उद्धार श्री विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज के उपदेश से सम्पन्न हुआ।
२. श्री आदिनाथजी का मन्दिर-स्वर्णगिरि के उच्च शिखर पर यह चौमुखजी का द्वितल जिनालय है। इसमें मूलनायक श्री शान्तिनाथ और श्री नेमिनाथ भगवान हैं। इसकी रचना सुमेरु शिखर की भाँति है और अष्टापदावतार नाम से पुकारा जाता है। कुवलयमाला की प्रशस्ति में जिस अष्टापद मन्दिर का सूचन है वह यही मन्दिर होना चाहिए। मुसलमानों के क्रूर हाथों द्वारा क्षतिग्रस्त होने पर भी मूल गंभारे की कोरणी तेरहवीं शती के बाद की नहीं लगती। जीर्णोद्धार के समय 'चउ अठ दस दोय' के बदले दुमंजिले के चौमुख भी बना दिए मालूम देते हैं। ऊपर और नीचे की मंजिल में चतुर्दिग प्रभु प्रतिमाएं विराजमान हैं जो अधिकांश प्राचीन हैं। प्रवेशद्वार के दाहिनी ओर एवं मूलनायक के वाम पार्श्व में एक सर्वांग सुन्दर प्रतिमा विराजमान है। श्री कुथुनाथ भगवान की चमत्कारिक प्रतिमा अलग देहरी में विराजित है। मुस्लिम आक्रान्ताओं द्वारा क्षतिग्रस्त मन्दिरों को जीर्णोद्धारित करने का श्रेय सं० १६८३ के लगभग मुहणोत जयमल को है ।
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