Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

View full book text
Previous | Next

Page 125
________________ (२) तत्पुत्र देबंग देवधरस्यां (?) पुत्रेण तथा जिनमति भार्या प्रोच्छा त्साहितेन श्रीसुविधिनाय देवस्य खतके द्वारकारितं धर्मार्थमिति ॥ मंगलं महाश्रीः । ( ११) __ ९ संवत् १२९४ वर्ष (र्षे) श्रीमालीयश्रे० वीसल सुत नागदेव स्तत्पुत्रा देल्हा सलक्षण झापाख्याः। झांपापुत्रोबीजाकस्तेन देवड़ सहितेन पितृझांपा श्रेयोर्थं श्रौजा (वा) लिपुरीय श्रीमहावीर जिन चैत्ये करोदि: कारिता ।। शुभं भवतु।। (१२) (१) ॥ संवत् १३२० वर्षे माघ सु(२) दि १ सोमे श्रीनाणकीय ग(३) च्छ प्रतिबद्ध जिनालये सहा(४) राज श्रीचंदनविहारे श्री(५) क्षीवरायेश्वर स्थाना (न) प(६) तिना भट्टारक रा [व] ल ल(७) क्ष्मीधरेण देवश्री म [हा(८) वीरस्य आसौज मासे । (९) अष्टाह्निका पदे द्रमाणां (१०) १०० शतमेकं प्रदत्तं ॥ तद्व्या (११) जमध्यात (त् ) मठपतिना गोष्ठि(१२) कैश्च द्रम १० दशकं बेचनी (१३) यं पूजा विधाने देव श्रीमहावीरस्य ।। ( १३ ) (१) ९० ॥ संवत् १३२३ वर्षे मार्गसु(२) दि ५ बुधे महाराज श्री चा(३) चिगदेव कल्याण विजय(४) राज्ये तन्मुद्रालंकारिणि (५) महामात्य श्री जक्षदेवे ।। (६) श्रीनाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध(७) महाराज श्री चंदनविहारे (८) विजयिनि श्रीमद्धनेश्वर (९) सूरौ तेलगृहगोत्रोद्भ (१०) वेनमहं नरपतिना स्वयं (११) कारित जिनयुगल पूजा १०० ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134