Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 82
________________ उस समय गजनीखान ने कहा-लाख रुपये के मामले में इतने से कैसे छोड़ ? संघ लौट आया। हृदय में अत्यन्त दुःख हुआ। हाय ! यह दुःख किससे कहें ? म्लेच्छ से प्रतिमा कैसे लें ? लोगों ने विविध प्रकार के अभिग्रह लिए। उस गाँव में अति गुणवान संघवी वीरचन्द रहता था, उसने पार्श्वनाथ प्रतिमा छूटे तब तक नियम लिया कि पार्श्वनाथ मूर्ति को पूज करके ही अन्न ग्रहण करूँगा। इस पर नीले घोड़े पर सवार और नीले वस्त्राभूषण से पार्श्व (यक्ष) धरणेन्द्र पद्मावती के साथ प्रगट हुए और अभिग्रहधारी सेठ से कहा-सेठ ! मेरी बात सुनो, रात-दिन क्यों भूखे मरते हो? पार्श्वनाथ भगवान की वास्तविक प्रतिमा को तो गजनीखान ने तोड़ डाला है, अब वह किसी प्रकार नहीं आ सकती ! तुम इतने लंघन क्यों करते हो ? सेठ ने कहा-इस भव में तो मैंने जो नियम लिया है वही सार है, यदि पार्श्वनाथ प्रतिमा नहीं आवेगी तो मर जाना ही श्रेयस्कर है ! __ सेठ का चित्त निश्चल जान कर धरणेन्द्र जालोर गया और गजनीखान से कहा-तुम सोये हो तो जागो ! जल्दी उठकर मेरे पाँव पड़ो और भिन्नमाल नगर में मुझे छोड़ो ! नहीं तो तुम्हारे पर कलिकाल रुष्ट हुआ-समझना ! जो मैं रुष्ट हुआ तो बुरा होगा और तुष्ट हुआ तो अपार ऋद्धि दूगा, शत्रुओं पर विजय कराऊंगा! गजनीखान अहंकार में भरकर कहने लगा-अरे बुतखाना ! तू मुझे क्या डराता है ? तुम रुष्ट या तुष्ट होकर मेरा क्या कर सकते हो? मैं भाग्यबली हूँ, डरने वाले हिन्दू गोबरे, हम तो खुदा के यार हैं। मुल्क में मुसल्मान बड़े हैं, बुतखाने के लिए तो वे कालस्वरूप हैं। मेरी बात सुन लो स्पष्ट, तुम्हारी देह के टुकड़े-टुकड़े कर डालूंगा और गली-गली में फिराऊंगा। मैं देखूगा कि तुम तुष्ट होकर मुझे क्या दे सकते हो और रुष्ट हो करके क्या ले लोगे ! मेरे सेवक होकर तुम मुझे क्या दोगे? गजनीखान ने तत्काल फैसला कर देने का निर्णय कर सिरोही के चार सुनारों को बुलाया और उन्हें कहा-इसको तोड़कर टुकड़े करो! जिसमें ( निकले हुए सोने ) से बीबी के लिए नवसर हार तथा घोड़े के गले के लिए घूघरमाल तैयार करो ! आज्ञा पाकर जब सोनी लोग तोड़ने को प्रस्तुत हुए तो सहसा भौंरों का दल गुंजारव करने लगा। और उसी समय बीबी व्याकुल होकर दौड़ने लगी। मतवाली काली घटा आसमान में देख कर खान भी चित्त में व्याकुल हुआ। [ ५७

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