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__ श्री जिनभक्तिसूरिजी ने सं० १७९३ मिती पोष सुदि १५ बुधवार के दिन जालोर में "सौभाग्य" नन्दि (नामान्त पद) प्रवत्तित कर निम्नोक्त ७ दीक्षा देकर भिन्न-भिन्न उपाध्याय, वाचकादि के शिष्य रूप में प्रसिद्ध किये थेदीक्षार्थी दीक्षानाम
गुरुनाम पं० कुशली
कुशलसौभाग्य बा० अमरमूत्ति पं० हीरो
हितसौभाग्य . पं० जयसुख पं० यशो युक्तिसौभाग्य
पं० अभयराज पं० लाली लक्ष्मीसौभाग्य
उ० क्षमाप्रमोद पं० आत्माराम अभयसौभाग्य पं० अभयसुन्दर पं० कानी कनकसौभाग्य
पं० हेमविजय पं. जयकरण जगतसौभाग्य
पं० अभयराज इसी 'नंदि' में भादवा सुदि २ को पं० हेमा को दीक्षित कर हर्षसौभाग्य नाम से पं० चारित्रहंस के शिष्य रूप में प्रसिद्ध किया था।
श्री पूज्य श्री जिनमहेन्द्रसूरिजी ने सं० १९०२ जालोर में निम्नोक्त ३ दीक्षाएं दी। पं० शोभाचन्द सुखकीत्ति म. श्री हितप्रमोद गणे पौत्रः (क्षेम शाखा) पं० श्रीचन्द सदाकीति पं० विरधौ विनयकत्ति
श्री पूज्य श्रीजिनचन्द्रसूरिजी ने सं० १९७७ चैत्रकृष्ण ९ शुक्रवार को जालोर दुर्ग में पं० वीरा को दीक्षा देकर पं० विवेकरत्न मुनि नाम से क्षेम शाखा के पं० प्र० पुण्यराज गणि के शिष्य और पं० उदयलाभ गणि के प्रशिष्य रूप में प्रसिद्ध किया था। इन दोनों श्री पूज्यों के उपयुक्त दीक्षा विवरण से ज्ञात होता है कि जालोर में उनके आदेशी क्षेमशाखा के यतिजन रहते थे।
इसी प्रकार खरतर गच्छ की आचार्य शाखा में सं० १७७४ मिति पोष सुदि १३ को जालोर में पं० जग्गा को दीक्षित कर पं० विनयशील नाम से प्रसिद्ध किये जाने का उल्लेख मिला है। श्री जिनहर्षसूरि
सं० १८६३ का चौमासा श्री जिनहर्षसूरिजी ने जालोर में किया था। श्री पूज्यजी के दफ्तर में खानपुरा आदि मुहल्लों के अधिवासी लूणिया, डोसी,
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