Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 92
________________ उस उदयसिंह राजा का विश्वास स्थान, कोश-भण्डार की रक्षा में निपुण देवपाल नामक महामंत्री बुद्धिरूपी नन्दन वन में चन्दन जैसा यानी बड़ा बुद्धिशाली है। आधारः सर्वधर्माणा - मवधिर्ज्ञान शालिनाम् । आस्थानं सर्वपुण्याना - माकर सर्वसम्पदाम् ॥७॥ प्रतिपन्नात्मजस्तस्य, वायडान्वय सम्भवः । धनपाल शुचिर्धीमान् विवेकोल्लासि मानसः ॥८॥ सर्व धर्मों का आधार ज्ञानशाली लोगों में अग्रसर, सब पुण्यों का वसतिस्थान सब सम्पदाओं की खान पवित्र, बुद्धिशाली, विवेक विकसित मनवाला वायड़ वंशोत्पन्न धनपाल नामक देवपाल का पुत्र है। तन्मन स्तोष पोषाय, जिनाय दत्तसूरिभिः । श्री विवेकविलासाख्यो, प्रन्थोऽयं निर्ममेऽनघः ॥९॥ श्री जिनदत्तसूरिजी ने उस धनपाल के मन को सन्तुष्ठ करने के लिए यह विवेकविलास नामक पवित्र ग्रन्थ रचा है। देवः श्री धरणो भुजंगम गुरुविद्य गादि प्रमोः, श्री मद्विश्व विदः प्रविस्फुर कलालंकार शृङ्गारिणः । भक्ति व्यक्ति विशेषमेष कुरुते तावच्चिरं नन्दतात्, ग्रन्थोऽयं भृशमश्लथावरपरैः पापठयमानो बुधैः ॥१०॥ नागकुमार का स्वामी श्री धरणेन्द्रदेव, स्फुरण पाती हुई सब कलाओं को शोभा देने वाली और सर्वज्ञ श्री युगादि नाथ ऋषभ भगबान की अतिशय भक्ति जहां तक प्रगट करता है वहां तक पंडित पुरुषों के द्वारा आदर से और बार-बार पढ़ा जाने वाला यह विवेकविलास ग्रन्थ चिरकाल तक आबाद रहे। ६. जीवदया रास-कवि आसिगु जालोर निवासी था। उसने सं० १२५७ में इस रास की रचना की है। आदि-उरि सरसति आसिगु भणइ, नवउ रासु जीवदया सार। कन्नु धरिवि निसणेहु जण, दुत्तर जेम तरहु संसार ॥१॥ जालउरउ कवि वज्जरइ, देहा सरवरि हंसु वखाण ॥२॥ [ ६७

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