Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 22
________________ ५ पार्श्वनाथ ये पांच चैत्य विद्यमान थे, लिखा है। नगर्षि ने महावीर जिनालय में ९५ प्रतिमाएं, नेमिनाथ जिनालय में ४१३, शान्तिनाथजी में १२५, आदिनाथ जी में ७१ प्रतिमाएं होने का उल्लेख किया है, पांचवें मंदिर पार्श्वनाथजी की प्रतिमा संख्या का उल्लेख नहीं है । मुगलों के शासन काल में जहांगीर बादशाह के समय मारवाड़ के राठौड़ वंशीय महाराज गजसिंह और उनके मंत्री मुहणोत जयमलजी हुए हैं उन्होंने सं० १६८१ में सुवर्णगिरि दुर्गपर एक जिनालय बनवा कर तीन प्रतिमाएं स्थापित की और वहां के प्रायः सभी मन्दिरों का जीर्णोद्धार और प्रतिष्ठाएँ कराई थी । मंत्री जयमलजी की पत्नियां सरूपदे और सोभागदेने कितनी ही मूर्तियाँ बनवाकर प्रतिष्ठित कराई जो आज भी विद्यमान है । सरूप दे के पुत्र नैणसी अन्य सभी पुत्रों से अधिक नामांकित हुए । जोधपुर के तत्कालीन राजा जसवंतसिंह ( प्रथम ) ने उन्हें अपना दीवान बनाया । अपने मंत्रीत्व काल में इन्होंने अत्यन्त कुशलता का परिचय दिया । मारवाड़ की सर्वाधिक प्रसिद्ध ख्यात - इतिहास ' नैणसी री ख्यात" नाम से लिखा जो केवल मारवाड़ ही नहीं किन्तु मेवाड़ तथा राजपूताने के अन्य सभी राज्यों के लिए भी अत्यन्त उपयोगी और महत्वपूर्ण इतिहास ग्रन्थ है । १. जाबालिपुर में प्रतिहार सम्राट वत्सराज ने राज्य करते हुए गौड़, बंगाल, मालव आदि पर विजय प्राप्त कर उत्तरापथ में महान राज्य स्थापित करने में प्रयत्नशील था । उसने उत्तर प्रदेश के कन्नौज में अपनी राजधानी स्थापित की । इतः पूर्व जावालिपुर राजधानी थी इस प्रकार जालोर को न केवल मारवाड़ की ही अपितु तत्कालीन बहुत बड़े साम्राज्य की राजधानी होने का भी गौरव प्राप्त हुआ था। शक सें० ७०५ ( वि० सं० ४० ) में जैन हरिवंश पुराण के कर्त्ता दिगम्बराचार्य जिनसेन ने पश्चिम में राज्य करने वाले सम्राट वत्सराज का उल्लेख किया है, यतः - [ १३

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