Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

View full book text
Previous | Next

Page 117
________________ ज्ञानप्रमोद गणि कृत श्री सुवर्णगिरि मण्डन पार्श्वनाथ स्तवनम् विमल गुण निधानं केवल श्री प्रधानं सकलं सुख विधानं ज्योतिरच्यं दधानं । दुरितभिदवधानं श्रेयसांसंनिधानं जिनमुपसम धानं नौमि पार्वाभिधानं ॥१॥ भविक कुमुदचन्द्रस्त्यक्त दोषो वितन्द्र प्रमद दम समुद्र पुण्य पद्मा सुभद्र । प्रणत सुरनरेन्द्र सौख्यकारी जिनेन्द्रो जयत नति दयास्तज्जितानङ्ग मुद्र ॥२॥ अश्वसेना वनीनाथ रम्याङ्गजं पन्नगाधीश पद्माश्रितां हयं भुजं । तत्वधीसौदधी पानु कारं सदा भव्य सत्वा विभु संश्रियध्वं मुदा ॥३॥ इन्द्रनीलङ्ग वर्ण निरंहस्ततं वासवाचार्य वाचा मगम्य स्त्रुतं । त्वांसि माराधयंति त्रिसध्ययके पार्श्व धन्याह्य पास्तान्यकृत्पास्तके ॥४॥ सत्य विद्या तपः श्री प्रणेताप्रधी रुग्र वंशांबरा हर्मणि धीरधी । पार्श्व नाथो जनै नम्यते..... म प्राग्विलीनाथि मिथ्या तमो विभ्रम ॥५॥ द्राग्भवाब्धिव्वुडज्जंतु पोतोपमः कोपथिध्व....... विद्धं स पूषोत्तम । काम मुत्फुल्ल पद्माननः पारग पावं यक्षाच्चित स्त्वं जयां को रग ॥६॥ वामोदरोदार सरोमरालं तीर्थाधिराज सुयशो विशालं । ध्यायन्तिये त्वां परमात्म रूपं भव्या लभन्ते प्रभुता स्वरूपम् ॥७॥ गीर्वाण धे.............."काम प्र......."नांत्वद । भावै विश्व पूजातिसया... "॥८॥ .........."र जनन व्रत केवल श्री सिद्युत्स वागल............. सुश्री। लोक नयी ? प्रमद वृन्द सुख प्रदानि कुर्याज्जिनो भविनृणां स समीहितानि ॥९॥ गाढं सठोग्र कमठोरु तपो तिधर्म निर्माथ पाथ उतभाषित शुद्ध धर्म । स्फज्जित्फणा मणि विभा विशथी कृतास पार्श्व प्रभुर्जयति सर्ब जगत्प्रकास ॥१०॥ ९२ ]

Loading...

Page Navigation
1 ... 115 116 117 118 119 120 121 122 123 124 125 126 127 128 129 130 131 132 133 134