Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 44
________________ बदि ४ को सुवर्णगिरि पर स्थित शान्तिनाथ विधि चैत्य में चौबीस देहरियों में २४ जिनबिम्बों का स्थापना महोत्सव बड़े विस्तार से सम्पन्न हुआ। उसी दिन धर्मतिलक गणि को वाचनाचार्य पद से विभूषित किया गया । सं० १३२८ मिती वैशाख सुदि १४ के दिन जावालिपुर में सा० क्षेमसिंह ने श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का महाबिम्ब, महं० पूर्णसिंह ने श्री ऋषभदेव, महं० ब्रह्मदेव ने भगवान महावीर स्वामी के बिम्ब का प्रतिष्ठा महोत्सव कराया। मिती ज्येष्ठ बदि ४ को हेमप्रभा साध्वी की दीक्षा हुई। सं० १३३० मिती वैशाख बदि ६ को प्रबोधमूत्ति गणि को वाचनाचार्य पद एवं कल्याणऋद्धि गणिनी को प्रवत्तिनी पद से अलंकृत किया। वैशाख बदि ८ के दिन श्री स्वर्णगिरि पर श्री चन्द्रप्रभ स्वामी का महाबिम्ब शिखर में स्थापित किया। इस प्रकार प्रतिदिन विश्व को चमत्कृत करने वाले सच्चारित्र पूर्ण धर्मप्रभावना करते हुए श्री महावीर भगवान के तीर्थ व शासन की प्रभावना करते हुए, संसार समुद्र में डूबते हुए प्राणियों का निस्तार करते व कल्पवृक्ष की भांति समस्त प्राणियों का मनोरथ पूर्ण करते हुए अपनी वचन चातुरी से वृहस्पति का १. ऊकेश वंशी सा० ब्रह्मदेव लिखापित धर्मप्रकरण वृत्ति की अपूर्ण १६-१७ गाथा को प्रशस्ति में श्री जिनेश्वरसूरिजी का वर्णन अपूर्ण रह गया है, किन्तु निम्नोक्त ३ श्लोकों में जावालिपुर-स्वर्णगिरि में कराये हुए अष्टाह्निका महोत्सवादिका वर्णन इस प्रकार है : श्री जावालिपुरे द्वितीय जिनराजोऽष्टाहिकां योऽद्ध तां। चैने मासि तृतीयकां वितनुते मन्ये वृषोद्यानिकां ॥६॥ श्री जावालिपुरे जिनेश भवने स्वश्रेयसेऽष्टाहिकां । चैत्रेमासि चतुर्थिकां गुरुतरां चक्रे तथा स्वस्तिकां ॥९॥ सोदर्याः सुकृते श्री स्वर्णगिरे स्तथा स्वजननी श्रेयोऽर्थमष्टाहिकां । चैत्रे मासि""""मथ · सुवर्णीन्याः शुभायाश्विने ॥१०॥ २. ऊपर श्री जिनेश्वरसूरिजी के अनेक प्रकार से जालोर में धर्म प्रभावना करने का वर्णन आ चुका है। श्री विजयनेमिसूरि शास्त्र भण्डार, खंभात की अनेकान्त जय पताका वृत्ति की प्रशस्ति में सा० बिमलचन्द्र के पुत्रों द्वारा [ २७

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