Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 69
________________ हुआ और खेमराज ने जालोर आकर राजा कान्हड़दे का प्रीतिपात्र बन कर सायला आदि ४८ गांव प्राप्त किए। उसके वंशज बाद में स्याल नाम से प्रसिद्ध हुए। सं० १२६५ में धर्मघोषसरि जालोर पधारे तब चौहान वंश के भीम नामक क्षत्रिय ने जैन धर्म स्वीकार किया। ओसवाल जाति में उसका गोत्र चौहान प्रसिद्ध हुआ। जालोर नरेश ने भीम को डोड गांव दिया जिससे वह डोड गाँव में आकर डोडियालेचा कहलाया। धर्मघोषसरि के उपदेश से उसने वासुपूज्य जिनालय कराया। इसी वंश के वीरा सेठ ने जालोर में चन्द्रप्रभ प्रासाद बनवाया था। सं० १२६६ में डोड गांव के मन्दिर की प्रतिष्ठा धर्मघोषसरि ने की। डोडियालेचा के सिवा गोवाउत, सुवर्णगिरा, संघवी, पालनपुरा और सेंधलोरा भी इसी गोत्र से सम्बन्धित हैं। कविवर कान्ह ने गच्छनायक गुरु रास में लिखा है कि धर्मघोषसूरि ने बील्ह आदि को प्रतिबोध दिया। यत: "जालउरि पडिबोहिय बील्ह पमुहो गणहरि धम्मघोषसूरि" इससे ज्ञात होता है कि उन्होंने जालोर में अनेकों को प्रतिबोध दिया था। लाखण भालाणी गाँव के परमार रणमल के पुत्र हरिया को सर्प दंश से विष मुक्त करके जीवनदान देने वाले धर्मघोषसूरि से प्रतिबोध पाकर हरियासाह जैन हुए जिनको सं० १२६६ में जालोर और भिन्नमाल के श्रावकों ने ओसवाल जाति में मिला लिया। भट्ट ग्रन्थों में उल्लेख है कि कान्हड़देव के शासनकाल में महेन्द्रसिंहसूरि ने भीम चौहान को बोध दिया। भावसागरसूरि ने उसे 'भीम नरेन्द्र' संज्ञा से पुकारा है यतः "सिरिपास भवण मज्झे भीम नरिदेण कहिय पास थुइ" ओसवाल वंश, के चौहान गोत्रीय वीरा सेठ ने जालोर में चन्द्रप्रभ जिनालय बनवाया (पृ० २६९) वाहणी गोत्रीय ओसवाल वरजांग ने जालोरी, साचोरी राडद्रही, सीरोही चार देशों को जिमाया इसी वंश के कर्मा ने जालोर में धर्म कार्यों में प्रचुर द्रव्य व्यय किया। ४४ ]

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