Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 25
________________ इस मन्दिर में सं० १९३२ में सरकारी तोपखाना-शस्त्रास्त्र रखे हुए थे, जो श्री विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज के सत्प्रयत्नों से हटाये जाकर जैन संघ के अधिकार में जिनालय आया और जीर्णोद्धार भी उन्हों के उपदेशों से सम्पन्न हुआ। ३. श्री पार्श्वनाथ भगवान का मन्दिर-कुछ दूरी पर स्थित मन्दिर छोटा सा किन्तु रमणीक है। परमार्हत् चालुक्य नरेश कुमारपाल द्वारा निर्मापित 'कुमर विहार' तो विशाल बावन जिनालय था। उसकी भमती में सं० १२९६ में गवाक्ष बनवाकर प्रतिमाएं विराजमान की गई थी। आगे बताया जा चुका है कि तोपखाने में स्थित शिलालेख के अनुसार सं० १२४२ में तत्कालीन देशाधिपति समरसिंह की आज्ञा से भां० यासू के पुत्र यशोवीर ने कराया था। तथा सं० १२५६ पूर्णदेवाचार्य द्वारा तोरण व स्वर्णमय दण्ड कलश ध्वजारोपणादि प्रतिष्ठित करने व अन्य सभी व्यवस्था का उल्लेख आगे किया जाचुका है। आज का यह मन्दिर तो छोटा सा है और प्राचीन कलाकृति भी सुरक्षित नहीं है फिर भी इसके शिखर की शैली बारहवीं तेरहवीं शती के शिखरों के समकक्ष है। संभवतः प्राचीन कुमर विहार के सम्पूर्ण ध्वस्त होने पर उसके बदले यह नव्य मन्दिर बनाया गया हो जिसे कुमार विहार का जीर्णोद्धार रूप माना जा सकता है। इस मन्दिर का जीर्णोद्धार भी श्री विजयराजेन्द्रसूरिजी के सदुपदेव से हुआ है। ४-५. शान्तिनाथ व नेमिनाथ के जिनालय-श्री स्वर्णगिरि तीर्थ को पंचतीर्थी रूप में प्रतिष्ठित करने के हेतु इन दोनों छोटे-छोटे जिनालयों को पासपास में निर्मित कराया गया। पूज्य आचार्य श्री विजयभूपेन्द्रसूरिजी महाराज के उपदेशों से जैन संघ ने सं० १९८८ में निर्माण करवा कर प्रतिष्ठा करवाई। . ये दोनों देवालय शिल्पकला के उदाहरण है और इसी चौक में एक ओर गुरुमन्दिर का नव्य निर्माण हुआ है।

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