Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 127
________________ चौमुख मंदिर में ऋषभदेव जी के पबासन पर' सम्वच्छुभे त्रयस्त्रिन्नन्दके विक्रमाद्वरे । माघ मासे सिते पक्षे, चन्द्र प्रतिपदा तिथौ ।।१।। जालन्धरे गढ़े श्रीमान्, श्रीयशस्वन्त सिंह राट् । तेजसा द्यु मणिः साक्षात्, खण्डयामास यो रिपून् ॥२॥ विजयसिंहश्च किल्लादारधर्मी महाबली । तस्मिन्नवसरे संघे जीर्णोद्धारश्च कारितः ॥३॥ चैत्यं चतुर्मुखं सूरिराजेन्द्रण प्रतिष्ठितम् । एवं श्री पार्श्वचैत्येऽपि प्रतिष्ठा कारिता वरा ॥४॥ ओसवंशे निहालस्य, चोधरी कानुगस्य च । सुत प्रतापमल्लेन, प्रतिमा स्थापिता शुभा ॥५॥ * न जाने कब इन मन्दिरों पर कब्जा करके राज्य-कर्मचारियों ने सरकारी युद्धसामग्री आदि भर के इनके चारों ओर कांटे लगवा दिये थे। वि० सं० १९३२ में जब श्रीमद्विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज जालोर पधारे तो उनसे जिनालयों की यह दशा नहीं देखी गई। आपने तत्काल राजकर्मचारियों से मन्दिरों की मांग की और उन्हें अनेक प्रकार से समझाया। परन्तु जब वे किसी प्रकार न माने तो सूरिजी ने दृढ़ता पूर्वक घोषणा की कि जब तक तीनों जिनालयों को राजकीय शासन से मुक्त नहीं करवाऊंगा, तब तक मैं नित्य एक ही बार आहार लूंगा और द्वितीया, पंचमी, अष्टमी, एकादशी, चतुदशी और अमावस्या तथा पूर्णिमा को उपवास करूंगा। आपने सं० १९३३ का चातुर्मास जालोर किया और योग्य समिति बनाकर वास्तविक न्याय प्राप्त करने के हेतु उन्हें जोधपुर नरेश यशवंतसिंहजी के पास भेजे । कार्यवाही के पश्चात् राजा यशवंतसिंहजी ने अपना न्याय इस प्रकार घोषित किया- 'जालोरगढ़ ( स्वर्णगिरि ) के मन्दिर जैनों के हैं, इसलिए उनका मन न दुखाते हुए शीघ्र ही मन्दिर उन्हें सौंप दिए जाएं और इस निमित्त उनके गुरु श्रीराजेन्द्रसूरिजी जो अभी तक आठ महीनों से तपस्या कर रहे हैं, उन्हें जल्दी से पारणा करवा कर दो दिन में मुझे सूचना दी जाय ।' ___ श्रीराजेन्द्रसूरिजी के उपदेश से जीर्णोद्धार हुआ और सं० १९३३ मा० स० १ रविवार को महोत्सवपूर्वक प्रतिष्ठा करके उन्होंने नौ उपवास का पारणा किया। उपर्युक्त शिलालेख अष्टापदावतार चौमुख जी के मन्दिर में लगा हुआ है। १०२ ]

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