Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 114
________________ परतौ पूगौ पहिली पास नौ रे, सेवा थी लह्या लील विलास रे । हिव वलि चरण गह्या प्रभु ताहरा रे, पूरो वंछित पास उल्हास रे ॥१६॥आंज०॥ ॥कलश ॥ इम नम्या जिनवर परम हित घर, जालौर अति आसता। नव निद्ध नमतां दीये इण भव, परभवै सुख सासता ॥ संवत सतरै सै सतावीस (१७२७) जेठ सुदि चवदिस दिन। मतिकुशल श्री महाराज भेटयां, मानव भव सफलो गिणे ॥१७॥ ॥ इति श्री जालौर मंडल षट् जिणहर स्तवनं समाप्तम् ॥ श्री पाश्र्व जिन स्तवन राग-सारंग ढाल-पंथीड़ानी मुझ मन भमरौ तुझ गुण केतकी रे अटकाणौ पल दूरि न जाइ रे । मूरति मोहै मोहनवेलडी रे, निरखंतां खिण तृप्ति न थाइ रे ॥१॥१०॥ पूनिम सिस मुख सोहै स्वांम नौ रे, दीपशिखासी नासा एह रे। अधर प्रवाली सम रंग जाणीयइ रे, अणीयाली अंखड़ी बहु नेह रे ॥२॥मु०॥ सकंध कलस सोहै अति देवना रे, कान कुडल सिसिहर सूर रे । सपत-फणामणि दै सुख सासता रे, पास नम्यां पातिक सहु दूरि रे ॥३॥मु०॥ तु रेवा हुं गवर सम सही रे, हुं केकी तू मेह समान रे। तु चंदो हुं चकोर तणी पर रे, चकवी चित्त चाहै ज्यू भान रे ॥४॥मु०॥ हंस तो मानसरोवर छोड़ि ने रे, नवि जाय किण सरवर पास रे । तिम हूं हरिहरादिक देव नै रे, नवि सेवु धरि मन उल्हास रे॥५॥मु०॥ निहचौ एक कियौ मैं एहवौरे, भव भव तु हिज देव प्रमाण रे । जौ तिल कूड़ कहुं इण अक्सरै रे, तो मुझ तुमची आण रे॥६॥१०॥ चोल मजीठ तणी पर माहरो रे, मन लागौ तोस्यु इकतार रे। मतिकुशल कहै कर जोड़ी करी रे, अवसरि करज्यो अम्हची सार रे ॥७॥मु०॥ ॥ इति श्री पार्श्व स्तवनं समाप्तम् ॥ [ ८९

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