Book Title: Swarnagiri Jalor
Author(s): Bhanvarlal Nahta
Publisher: Prakrit Bharati Acadmy

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Page 86
________________ सिंह के पुत्र मंत्री श्री यशोवीर ने अपनी माता श्री उदयश्री के श्रेय के हेतु मादड़ी गाँव के जिनालय में जिन युगल ( कायोत्सर्ग प्रतिमाएं ) कराये और उसकी प्रतिष्ठा श्री शांतिसूरिजी ने की । दूसरी प्रतिमा पर भी इसी संवत् - मिती का यही लेख है जो मूलनायकजी के दाहिनी ओर है, मुनि जयन्तविजयजी ने उसका लेख अलग से नहीं दिया है । २ ॐ श्री खं (षं) डेरक गच्छ सूरि चरणोपास्ति प्रवीणान्वये । दुःसाधोदर्यासह सूनु रखिल क्ष्माचक्र जाग्रद्यशाः । शांति विभोश्चकार यशोवीरो गुरु चैत्ये स्वयं बिंबं मातुः श्रीउदयश्रियः शिवकृते ज्येष्ट (ष्ठ) प्रतिष्टा (ष्ठा) शुक्ल मादड़ी स त्रयोदश्यां ग्रामे चक्रे - मंत्रिणा । कारिते ॥१॥ वसुवस्वर्क वत्सरे । श्री शांतिसूरिभिः ॥ अर्थात् —संडेरक गच्छ के आचार्यों के चरणोपासना में प्रवीण वंशोत्पन्न दुसाध उदयसिंह के पुत्र, समस्त राजाओं में फैली हुई कीति वाले यशस्वी महामंत्री यशोवीर ने अपनी मातुश्री उदयश्री के आत्म श्रेयार्थ श्री शांतिनाथ स्वामी की प्रतिमा मादड़ी में अपने बनवाये हुए चैत्यालय में सं० १२८८ ज्येष्ठ सुदि १३ बुधवार को श्री शांतिसूरिजी द्वारा प्रतिष्ठा कराई । सं० १२९३ में आबू की लूणिगवसही की प्रतिष्ठा में ८४ राणा, १२ मण्डलिक, ४ महाधर और चौरासी जातियों की विशद सभा में सोभन सूत्रधार द्वारा निर्मित 'लूणिग वसति' के शिल्प कला समृद्ध अद्भुत चैत्य की भूलों के सम्बन्ध में पूछने पर विद्वान मंत्री यशोवीर ने १४ भूलें बतलाई थी, जिसका उपदेशसार टीका में भी उल्लेख है । मंत्रीश्वर ने वस्तुपाल यशोवीर मंत्री के शिल्प शास्त्रादि सभी विद्या कौशल आदि सद्गुणों की भूरि-भूरि प्रशंसा की थी । प्रबन्ध - चिन्तामणि ( चतुर्थ प्रकाश ) में मंत्री यशोवीर के सम्बन्ध में इस प्रकार लिखा है कि जावालिपुर निवासी मंत्री यशोवीर शिल्प शास्त्रादि का बड़ा अनुभवी विद्वान था । आबू पर तेजपाल मंत्री द्वारा अपने भ्राता की स्मृति में विशाल, 'लूणिगवसही' का निर्माण होकर प्रतिष्ठा के बाद मंत्री यशोवीर को बुलाकर प्रासाद के गुण-दोष का अभिप्राय पूछा। उसने स्थपति शोभनदेव को बुला कर कहा - रंगमण्डप में शाल-भंजिका ( पुत्तली ) की जोड़ी की विलास घटना, [ ६१

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