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*पृथ्वी पति विक्रम के राज मरजाद लीन्है, सत्रहसैवीते पर बानुआ वरस में । आसू मास आदि द्यौस संपूरन नथ कीन्हौ, वारतिक करिकै उदार वार ससि में । जो पै यहु भाषा ग्रंथ सबद सुबोध याकौ, तोहू बिनु संप्रदाय नावै तत्व वस में । यातें ज्ञान लाभ जानि संतनिकोवैन मानि बात रूप नथ लिख्यौ महाशान्त रस में ॥
खरतर गच्छ नाथ विद्यमान भट्टारक जिनभक्तिसूरिजू के धर्म राज धुर में। खेम साख माझि जिनहर्षजू वैरागी कवि शिष्य सुखवर्द्धन सिरोमनि सुघर में ।
ताके शिष्य दयासिंघ गणि गुणवंत मेरे धरम आचारिज विख्यात श्रुतधर में। ताको परसाद पाइ रूपचंद आनंद सौं पुस्तक बनायो यह सोनगिरि पुर में । मोदी थापि महाराज जाकौं सनमान दीन्हो फतचंद पृथीराम पुत्र नथमाल के। फतचंद जू के पुत्र जसरूप जगन्नाथ गोत गुनधर में धरैया शुभ चाल के ।। तामें जगन्नाथ जू के बूझिव के हेतु हम व्यौरि के सुगम कीन्है वचन दयाल के । वांचत पढत अब आनंद सदा ए करो संगि ताराचंद अरु रूपचंद बाल के ।
देशी भाषा को कहूं, अर्थ विपर्यय कीन । ताको भिच्छा दुक्कडं सिद्ध साख हम कीन ।
*अंत-चंद्र अनइ रस जाणीइ तु भमरुली बाण वली ससी जोइ तु सा नवरंगी,
ते संवच्छर नाम कहुतु भमरुली सावण सुदि तिय होइ सा नवरंगी ६९ श्री जालुर नयर भलु तु भमरुली, जिणहर पंच विसाल सा नवरंगी, हरखि तिहां मई तवन करु तु भमरुली, भणतां मंगलमाल सा नवरंगी"७०
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