SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 146
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ (१६) विशेष-श्रारम्भ के 5-6 पद्य आदिनाथ के, फिर नवकार, १२ भावना पार्श्वनाथ के मवैये हैं। पद्यांक १७ में ६८ में २४ तीर्थंकरों के एक २ सवैये हैं। [स्थान-अभय जैन ग्रन्थालय ] ( ७ ) चौवीश जिनपद भादि नासिरायः कुल बद, मरुदेवी केरे नंद । अधिक दीठ श्रागद, टारइ भव फेरउ । निरमल गांगनौर, सोवन बन्न सरीर । मेवनां संसार तार, जाकई इंद्र चेग्उ ॥ नयरंग कहा लोइ, गाउ २ महु कोड । त्रिभुवन नीको जोइ, नाही हा अनेरउ । मंत्र सेव श्रादिनाथ, सिवपुर फेरउ साथ । सुरतरु जाके हाथ, सोहन नवेरउ ॥१॥ प्रति-पत्र २ अपूग, पद ३२ पूर. ३३ वां अधृग रह जाता है। ले-१७ वी तिम्वित । [अभयजैन ग्रंथालय ] ( ८ ) चौबीस जिन सवैया धरममी श्रादि ग्रादि ही को तीर्थ कर श्रादि ही को मिक्षाचा । श्रादि गय आदि जिन च्यारौं नाम आदि श्रादि ॥ पाचमा रिषभनांम पुरै सब इछा काम । काम धेनु काम कुभ को नो सब मादि मादि । मन सौ मिथ्यात मेटि भाव सौ जिणंद मेटि । पावौज्यु अनंत सुख जावोगुण वादि वादि ॥ साची धर्म सीख धारि आदि ही कुं सेवो यार । प्रादि की दहाई भाई जो न बोलै श्रादि श्रादि ॥ १ ॥ त साधु भाव दस ध्यारि हजार, हजार छतीस सु साध्वी बंदी। गुणमटि सहस्स सिरै लख धावक श्रावकाची दुगुणी दुति चंदी।
SR No.010790
Book TitleRajasthan me Hindi ke Hastlikhit Grantho ki Khoj Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAgarchand Nahta
PublisherRajasthan Vishva Vidyapith
Publication Year1954
Total Pages301
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size6 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy