________________
(१४)
खोटा-दुष्ट एवा प्रारंभो-पापो जे करे-सेवे ते बाल जाणवो. एटले जे पापोनो शास्त्रमा अनेकधा निषेध को होय, जे पापो सेववाथी उभय लोकतुं अकल्याण थाय, जे कार्योमां शास्त्रे बहु पाप मान्युं होय, लोकोमा वारंवार निंदा थाय, जेवा के-चोरी, महाजूठ, व्यभिचार आदि, धर्मी अने महापुरुषोनी निंदा, ज्ञानी तथा धर्माचार्यनी गर्दा विगेरे विगेरे अनेक पापीय कार्योमां जेयोनुं चित्त रम्या करे, नित्यशः तेवा कार्यो करता जेमो पोतानी स्थिति मर्यादा, लोकनिंदा, दुर्गतिनो डर अने प्रभु प्राज्ञानो भय गणे नहीं ते सर्व अहीं बालवर्गमां जाणवा. प्रथम कह्या प्रमाणे या वर्गमां विशेष बुद्धि न होवाथी ते लोको पागल-पाछल कांइ पण विचारता नथी, तेथी ज श्रा लोकोनी भावी कढंगी स्थिति होय छे. " मध्यम-लक्षण"
" मध्यमबुद्धस्तु मध्यमाचारः" मध्यम प्रकारना जे प्राचारो सेवे ते मध्यमबुद्धि. या वर्गमां पहेला वर्गनी अपेक्षाए विशिष्ट मति होवाथी ते लोको विशेष विचार करे छे, जनापवाद अने प्रात्मनिंदानो भय राखे छे. एवं विशेष पापने समजता होवाथी अधिक पापमय कार्यो करता डरे छे. जे कार्योमां शास्त्रे विशेष पाप दर्शाव्यु होय अने जनतानो बहोळो भाग विशेष पाप मानतो होय तेवा पापाचारो जे न सेवे, जेवा के पूर्वे जे बालाजीवो पापो करे छे ते सर्व पापो या लोको सेवता नथी, तो पण शास्त्रनो बोध न होवाथी