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जरा सा अविवेक (सुभौम चक्रवर्ती)
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राजभवन सुन्दर ध्वजा-पताका आदि से सुशोभित था, चारों ओर दीवारों और कोटों पर अद्भुत सुन्दर चित्र बनाये हुए थे; छह खंड के अधिपति सुभौम चक्रवर्ती रत्नजड़ित स्वर्ण-सिंहासन पर विराजमान थे, पास में मंत्रीगण तथा अन्य 7 सभासद बैठे थे। संगीत, नृत्य-गान तथा/ धुंघरुओं की छमछम से सबका मन मुग्ध हो रहा था। अचानक एक पूर्वभव का बैरी देव बैर लेने की इच्छा से व्यापारी का भेष धारण करके चक्रवर्ती को एक फल भेंट करते हुए कहता है कि- “हे राजन्! आपने ऐसा मधुर फल कभी नहीं खाया होगा।"
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