Book Title: Jain Dharm Ki Kahaniya Part 10
Author(s): Rameshchandra Jain
Publisher: Akhil Bharatiya Jain Yuva Federation

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Page 40
________________ अकम्पनाचार्य की अडिगता.. विष्णुकुमार की वात्सल्यता निर्दोष वात्सल्य का प्रतीक रक्षाबन्धन का पर्व जैनों का एक महान ऐतिहासिक पर्व है। ७०० मुनिवरों की रक्षा का और धर्म रक्षण की महान वात्सल्य भावना का प्रसंग इस पर्व के साथ जुड़ा हुआ है। यह प्रसंग हस्तिनापुर में बना था। દુષ્ટ બલિરાજા અકંપનાચાર્ય આદિ ૭૦૦ મુનિઓને અગ્યાનો ઉપસર્ગ કરેછે. શ્રી વિપગ કુમાર માન બાપ બળાં બ્ધિ થી આ અણનું શપ ધારણ કરી તે ઉપસર્ગને શાંત કરે છે અને બાર રાજા મામા 7) जब अकम्पानाचार्य ७०० मुनियों के संघ सहित उज्जैन नगरी में पधारे, तब दुष्ट मन्त्रियों के साथा राजा उनकी वन्दना करने गया। अवसर का विचार कर आचार्य श्री ने संघ को मौन धारण करने का आदेश दिया। इसमें संघरक्षा का वात्सल्य दिखलाई देता है। दो मुनियों ने, जो बाहर रह गये थे और जिन्हें आचार्य

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